सोमवार, ३० नोव्हेंबर, २०१५

राजीवजी दिक्षित का परिचय

राजीवजी दीक्षित

जन्म30 नवम्बर 1967
अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत
मृत्यु30 नवम्बर 2010 (उम्र 43)
भिलाई, छत्तीसगढ़, भारत
राष्ट्रीयता- भारतीय
धर्म- हिन्दू
अविवाहित

राजीव दीक्षित (30 नवम्बर 1967 - 30 नवम्बर 2010) एक भारतीय वैज्ञानिक, प्रखर वक्ता और आजादी बचाओ आन्दोलन के संस्थापक थे।.[1] बाबा रामदेव ने उन्हें भारत स्वाभिमान (ट्रस्ट) के राष्ट्रीय महासचिव[2] का दायित्व सौंपा था, जिस पद पर वे अपनी मृत्यु तक रहे। वे राजीव भाई के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे।

जीवन परिचय -

राजीव दीक्षित का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जनपद की अतरौली तहसील के नाह गाँव में राधेश्याम दीक्षित एवं मिथिलेश कुमारी के यहाँ 30 नवम्बर 1967 को हुआ था। फिरोजाबाद से इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त उन्होंने इलाहाबाद से बी० टेक० तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर से एम० टेक० की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने कुछ समय भारत के सीएसआईआर तथा फ्रांस के टेलीकम्यूनीकेशन सेण्टर में काम भी किया। तत्पश्चात् वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ॰ ए पी जे अब्दुल कलाम के साथ जुड़ गये। [3]

योगदान-

दीक्षित ने 20 वर्षों में लगभग 12000 से अधिक व्याख्यान दिये।[4] भारत में 5000 से अधिक विदेशी कम्पनियों के खिलाफ उन्होंने स्वदेशी आन्दोलन की शुरुआत की।उन्होंने 9 जनवरी 2009 को भारत स्वाभिमान ट्रस्ट का दायित्व सँभाला।

कार्य-

दीक्षित ने स्वदेशी आन्दोलन तथा आज़ादी बचाओ आन्दोलन की शुरुआत की तथा इनके प्रवक्ता बने।
उन्होंने जनवरी 2009 में भारत स्वाभिमान न्यास की स्थापना की तथा इसके राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं सचिव बने।

मृत्यु

30 नवम्बर 2010 को दीक्षित को अचानक दिल का दौरा पड़ने के बाद पहले भिलाई के सरकारी अस्पताल ले जाया गया उसके बाद अपोलो बी०एस०आर० अस्पताल में दाखिल कराया गया। उन्हें दिल्ली ले जाने की तैयारी की जा रही थी लेकिन इसी दौरान स्थानीय डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। डाक्टरों का कहना था कि उन्होंने ऍलोपैथिक इलाज से लगातार परहेज किया। चिकित्सकों का यह भी कहना था कि दीक्षित होम्योपैथिक दवाओं के लिये अड़े हुए थे। अस्पताल में कुछ दवाएँ और इलाज से वे कुछ समय के लिये बेहतर भी हो गये थे मगर रात में एक बार फिर उनको गम्भीर दौरा पड़ा जो उनके लिये घातक सिद्ध हुआ।

क्या आप “इकनोमिक हिटमैन” के बारे मे जानते है ?

“एक राष्ट्र को जितके गुलाम बनाने के दो तरीके है, एक तलवार के द्वारा और दूसरा ऋण के द्वारा” 
- जॉन ऐडम्स (संयुक्त राज्य अमेरिका के दूसरे राष्ट्रपति, 1735–1826) 

‘इकनोमिक हिटमैन’ उच्च वेतन पानेवाले पेशेवर लोग है जो विश्व भर के देशों को अरबो डॉलर का धोखा देते है| वे यह काम कैसे करते है ? आइये जाने –

पहले वे एक ऐसी देश की पहचान करते है जिस देश की बहुत प्राकृतिक सम्पदा हो और वह प्राकृतिक सम्पदा उस देश की निगमों के अधीन हो जैसे तेल, गैस, कोयला, मिनरल्स इत्यादि फिर वो उस देश के लिए विश्व बैंक से या विश्व बैंक के किसी दुसरे संस्था से देश की बुनियादी ढांचे के विकास के लिए ऋण देने की व्यवस्था करते है | 

लेकिन वास्तव मे उस देश के लिए पैसा कभी नही जाता है बजाये वो उनके बड़े निगमों को जाता है जो उस देश मे बिजली संयंत्र, औद्योगिक पार्क, बंदरगाहों जैसे बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का निर्माण करते है जिससे उस देश के कुछ अमीर लोगों को और उनके निगमों को हि फायदा होता है पर देश के अधिकतर लोगोंको कुछ नही मिलता| 

हालांकि 99% जनसँख्या, पूरा देश एक विशाल ऋण के तले दब जाता है जिसको कभी भुगतान नही किया जा सकता और उस देश की यही अवस्था उनकी योजना का हिस्सा है; ऐसी अवस्था मे इकनोमिक हिटमैन उस देश के नेतृत्व के पास फिर से पोहुंच जाता है और प्रस्ताव देता है के ‘आपके देश को पैसा चाहिए और आप ऋण से दबे है तो आपको और लोन देंगे परन्तु आपको अपने देश का तेल सस्ते मे हमारे कंपनी को बेचना होगा, या आपके देश मे हम अपना मिलिट्री अड्डा बनाना चाहते है, या संयुक्त राष्ट्र के वोटिंग मे हमारे पक्ष मे वोट करिए, इराक की युद्ध मे सहायता के लिए अपनी सेना भेजिए, अपने देश के बिजली संयंत्र की निजीकरण करिए, जल संसाधन को भी निजीकरण करिए और अमेरिकी कंपनी को बेच दीजिये, बीमा व्यवस्था को विदेशी कंपनी को बेच दीजिये, अपने देश कि मुद्रा का अवमूल्यन करिए इत्यादि’| 

इसी तरह वो देश धीरे धीरे आर्थिक गुलामी से सम्पूर्ण गुलामी मे फंसता चला जाता है ...

अधिक जानकारी के लिए यह विडियो देखे: 
https://www.youtube.com/watch?v=RVsB07CcSNw

चौदा

चौदा प्रकारचे जप - १ नित्यजप , २ नैमित्तिक , जप , ३ कम्यजप , ४ निषिद्ध जप , ५ प्रायश्चित्त जय , ६ अचल जप , ७ चल जप , ८ वाचिक जप , ९ उपांशु जप , १० भ्रमर जप , ११ मानस जप , १२ अखंड जप , १३ अजपा जप , आणि १४ प्रदक्षिणा जप .

चौदा प्रकारचा भूतसमुदाय - १ सिद्ध , २ गुह्मक , ३ गंधर्व , ४ यक्ष , ५ राक्षस , ६ सर्प , ७ विद्याधर , ८ पिशाच - या आठ देवयोनि आणि ९ सरीसृप , १० वानर , ११ पशुअ , १२ मृग ( जंगली प्राणी ) १३ पक्षी - या पांच तिर्यग् ‌‍ योनि व १४ मनुष्य योनि . असा चौदा प्रकारचा भूतसमुदाय अथवा प्राणिमात्र होत .

चौदा प्रकार यज्ञाचे - १ अग्निष्टोम , २ अत्यग्निष्टोअम , ३ उक्थ , ४ षोडशी , ५ वाजपेअय , ६ अतिरात्र , ७ आप्तोर्याम , ह्मा सात सोमसंस्था आणि ८ अग्निहोत्र , ९ दर्शपूर्णमास , १० आग्रयण , ११ पिण्डपितृयज्ञ , १२ चातुर्मास्य , १३ निरूढ पशुबंध आणि १४ सौत्रामणि . अशा सात हवियज्ञ संस्था मिळून चौदा प्रकार होत .

चौदा प्रकार रुद्राक्षांचे - एक ते चौदा मुखें असलेल्या रुद्राक्षांचीं चौदा नांवें क्रमानें :- १ शिव . २ देवदेवेश्वर , ३ अनल , ४ ब्रह्मा , ५ कालाग्निरुद्र , ६ कार्तिकेय , ७ अनङ्‌‌ग , ८ विनायक , ९ मैरव , १० नजार्दन , ११ रुद्र , १२ आदित्य , १३ विश्चेदेव व १४ परम - शिव .

चौदा प्रकारच्या शालिग्राम शिला - १ प्रलंबघ्न , २ पुंडरीक , ३ वैकुंठ , ४ मधुसूदन , ५ सुदर्शन , ६ नर ७ राम , ८ लक्ष्मीनारायण , ९ वीरनारायण , १० क्षीराव्धिशयन , ११ माधव , १२ हयग्रीव , १३ परमेष्ठी व १४ विष्वक्‌‌सेन . असे एक चक्र असलेले शालिग्रामाचे चौदा प्रकार . माध्व संप्रदायांत शालिग्रामपूजनाचें विशेष महत्त्व मानलें आहे .

चौदा प्राकृत भाषा - १ शौरसेनी , २ महाराष्ट्री , ३ मागवी , ४ अर्धमागधी , ५ प्राच्य किंवा गौडी , ६ अवन्तिका ७ दाक्षिणात्य ८ शाकरी , ९ बाल्हिकी , १० द्राविडी , ११ आभीरी , १२ चाण्डाली , १३ शाबरी व १४ पैशाची . ( भारतीय साम्राज्य )

चौदा प्रांत भाषा - १ आसामी , २ बंगाली , ३ गुजराथी , ४ हिंदी , ५ कानडी , ६ काश्मिरी , ७ मल्याळी , ८ मराठी , ९ ओरिया , १० पंजाबी , ११ संस्कृत , १२ तामिळ , १३ तेलगु व १४ ऊर्दू . या चौदा प्रमुख भाषा प्रांतभाषा म्हणून भारतीय घटनेनें मान्य केल्या आहेत . ( हिंदी राज्यघटना ) खेरीज साहित्य अकॅडमीनें इंग्रजी व सिंधी या दोन भाषांस कांहीं प्रमाणांत मान्य्ता दिली आहे .

चौदा प्रमुख नाडया - १ सुषुम्ना , २ इडा , ३ पिंगला , ४ कुहु , ५ गांधारी , ६ हस्तिजिव्हा , ७ सरस्वती , ८ पूषा , ९ पयस्विनी , १० शंखिनी , ११ यशस्विनी , १२ करुणा , १५ विश्बोदरा आणि १४ अलम्बुषा . ( योगशास्त्र )

चौदा प्रमुख स्त्रोते - १ प्राणवह २ उदकवह , ३ अन्नवह , ४ रसवह , ५ रक्तवह , ६ मांसवह , ७ मेदोवह , ८ अस्थिवह , ९ मज्जावह , १० शुक्रवह , १२ आर्तववह , १३ पुरीषवह , व १४ स्वेदवह , शरीरांत उत्पन्न होणार्‍या असंख्य भावांचें उत्पादन व वहन करणार्‍या अंसख्य स्त्रोतसांत चौदा प्रमुख खोतसें शास्त्रकारांनीं वर्णिलीं आहेत.

चौदा बलें राज्यशासकांचीं - ( अ ) १ देश , २ दुर्ग , ३ रथ , ४ हत्ती , ५ घोडे , ६ योद्धे , ७ राज्याधिकारी , ८ अंतःपुर , ९ अन्नव्यवस्था , १० अश्वरथादिकांचा पुरवठा , ११ नीति , १२ आयव्यय , १३ द्वव्य - पुरवठा आणि १४ गुप्तशत्रु , हीं चौदा राज्यशासकांचें बलाबल अजमावण्याचीं स्थानें होत . ( आ ) १ अंगबल , २ स्वतःचें शरीरबल . ३ सेनाबल , ४ कोशबल , ५ दुर्गबल , ६ कोटकिल्ले , ५ शक्तिबळ , ६ मंत्रबळ , ९ - १० - ११ वेदत्रयबळ ( आयुर्वेद , धनुर्वेद व गांधर्ववेद ) १२ बुद्धिबळ , १३ ब्राह्मणशेष सुकृतबळ आणि १४ अन्य राज्यांचें साह्मबळ .

चौदा ब्रह्में - १ शब्दब्रह्म , २ नित्येकाक्षरब्रह्म , ३ खंब्रह्म , ४ सर्वब्रह्म , ५ चौतन्यब्रह्म , ६ सत्ताब्रह्म , ७ साक्षिब्रह्म , ८ सगुणब्रह्म , ९ निर्गुणब्रह्म १० वाच्याब्रह्म , ११ अनुभवब्रह्म , १२ आनंदरब्रह्म , १३ तदाकारब्रह्म व १४ अनिर्वाच्यब्रह्म .

चौदा मनु - १ स्वायंभुव , २ स्वारोचिष , ३ उत्तमननु , ४ तामसमनु , ५ रैवत , ६ चाक्षुष , ७ वैवस्वत , ८ सावर्णि , ९ दक्षसावर्णि , १० ब्रह्मा सावर्णि , ११ धर्मसावर्णि , १२ रुद्रसावर्णि , १३ देवसावर्णि व १४ इंद्रसावर्णि . सृष्टिचक्रांत असलेली , कोकस्थिति कांहीं कालानें बिघडते व पुन्हां ती ताळ्यावर आणण्यासाठीं जुळबाजुळव होते . हा जो जुळवाजुळव होऊन मोडेपर्यंतचा काल त्यास मन्वन्तर म्हणतात . त्या मन्वन्तराचा अधिपति तो मनु . असे चौदा मनु आहेत , अशी कल्पना आहे .

चौदा मन्वन्तरें - १ स्वायंभुव , २ स्वारोचिष , ३ उत्तम , ४ तामस , ५ रैवत , ६ चाक्षुष , ७ विवस्वत , ८ सावर्णी , ९ धर्म , १० सावर्णिक , ११ पिशंग , १२ अपिशंगाम , १३ शबल आणि १४ वर्णक . ब्रह्मदेवाचें एक अहोरात्र म्हणजे कल्प , असे तीस कल्प सांगितले आहेत . एका कल्पांत चौदा मन्वन्तरें होतात . सध्यां चालू असलेल्या वाराह कल्पांतल्या सातव्या मन्वन्तराचें नांव वैवस्वत आहे .

चौदा मन्वतरावतार - १ यज्ञ , २ विभु , ३ सत्यसेन , ४ हरि , ५ वैकुंठ , ६ अजित , ७ वामन , ८ सार्वभौम , ९ ऋषभ , १० विष्वक्‌‍सेन , ११ धर्मसेतु , १२ सुदामा , १३ योगेश्वर व १४ बृहद्भानु .

चौदा माहेश्वरी सूत्रें - १ अ इ उ ण् ‌‍ , २ ऋ लृ क् ‌‍ , ३ ए ओ ङ् ‌‍ , ४ ए ओ च् ‌ , ५ ह य व र ट् ‌ , ६ ल ण् ‌‍ , ७ ञ म ङ ण न म् ‌‍ , ८ झ भ ञ् ‌‍ , ९ घ ढ ध ष् ‌‍ , १० ज ब ग ड द श् ‌‍ , ११ ख फ छ ठ थ च ट त व् ‌‍ , १२ क प य् ‌‍, १३ श ष स र् ‌‍ आणि १४ ह ल् ‌ . हीं मूळ सूत्रें पाणिनीनें अठ्ठावीस दिवस तप करून शंकराकडून मिळविलीं . ( भ . प्रतिसर्ग ४ - ३० ) पाणिनीच्या कठोर तपामुळें भगवान् ‌‍ शंकरानें प्रसन्न होऊन ताण्डव नृत्य करीत असतांना जो डमरू वाजबिला त्यांतून निघालेल्या चौदा ध्वनि - नादामुळें हीं मूळ चौदा सूत्रें ध्वनिरूपानें निघालीं .

चौदा यज्ञ ( गीतोक्त )- १ ब्रह्मयज्ञ , २ द्र्व्यज्ञ , ३ देवयज्ञ , ४ ज्ञानेंद्रिययज्ञ , ५ विषययज्ञ , ६ स्वाध्याय - ज्ञानयज्ञ , ७ प्राणयज्ञ , ८ अपानयज्ञ , ९ प्राणापानयज्ञ , १० आंतरपानयज्ञ , ११ योगयज्ञ , १२ तपोयज्ञ , १३ जपयज्ञ व १४ इंद्रियप्रान - कर्मयज्ञ . या सर्वांत जपयज्ञ महत्त्वाचा होय .

चौदा यमधर्म - १ यम , २ धर्मराज , ३ मृत्यु , ४ अंतक , ५ वैवस्वत , ६ नील , ७ दध्न , ८ काल , ९ सर्वभूत , १० षरमेष्ठी , ११ वृकोदर १२ औदुंबर , १३ चित्र व १४ चित्रगुप्त .

चौदा रत्नें -

( अ ) देव आणि दानव यानीं समुद्र्मंथन करून चौदा रत्नें अथवा मूल्यवान् ‌‍ वस्तु काढल्या त्या - १ लक्ष्मी , २ कौस्तुभ , ३ पारिजातक , ४ सुरा , ५ धन्वंतरी , ६ चंद्र , ७ कामधेनु , ८ ऐरावत , ९ रंमा ( आदि अप्सरी ), १० उच्चैःश्रव नामक सप्तमुखी अश्व ( हा श्चेतवर्ण व उन्नतकर्ण असा होता ), ११ कालकूट विष , १२ शाङ्‌‍र्ग धनुष्य , १३ पांचजन्य शंख व १४ अमृत होय .

( आ ) प्रत्येक जातींतील श्रेष्ठं वस्तूला रत्न अशी संज्ञा आहे. अशी चौदा प्रकारचीं रन्तें पुराणांत वर्णिलीं आहेत तीं :- १ हत्ती , २ घोडा , ३ रथ , ४ स्त्री , ५ पुरुष , ६ कोश ( धन ), ७ पुषमाला , ८ वस्त्र , ९ वृक्षराजि , १० शक्ति , ११ पाश , १२ मणि , १३ छत्र व १४ विमान .

चौदा रत्नें वेदाब्धिमंथनांतून निघालेली - १ विष - काम , २ मणि - अर्थ , ३ रंभा - नरकप्रदवेश्या , ४ वाजी.५ श्री - शक्ति , ६ वारुणी - अभिमान , ७ धन्वतरि - विष्णु , ८ शंख - मोक्ष , ९ धेन - धर्म , १० धनु - मर्न्य - युद्ध - संघंर्ष , ११ चंद्र - आल्हाद तत्त्व शिव , १२ कल्पवृक्ष - खर्ग ( त्रिवर्गभोग ), १३ गज ऐरावत - गणेश गजानन आणि १४ अमृत - कथा .

चौदा रोगभेद - १ सहजरोग , २ गर्मजरोग , ३ जातज्ञातरोग , ४ पीडाजनितरोग , ५ कालरोग , ६ प्रभावजरोग , ७ स्वभावजरोग , ८ देशजरोग ९ आगंतुकरोग , १० कायिकरोग , ११ आंतररोग , १२ कर्मजरोग , १३ दोषजरोग आणि १४ कर्मदोषजरोग .

चौदा लाभ शिखा धारणानें प्राप्त होणारे - १ निष्णातता , २ जीवनशक्तिन , ३ दीर्घायुष्य , ४ बल , ५ तेज , ६ अन्न , ७ धन , ८ सुमन , ९ द्दष्टि , १९ देवताप्रसाद , ११ यश , १२ प्रजननशक्ति , १३ सुप्रजा आणि १४ उत्तम वीर्य .

चौदा वाचा दोष - १ पद्यांतील प्रयोग गद्यांत व गद्यांतील प्रयोग पद्यांत करणें , २ नाददोष , ३ क्रमदोष , ४ पददोष , ५ वाक्यदोष , ६ शक्तिदोष , ७ सामर्थ्यदोष , ८ गुणदोष , ९ प्रसाददोष , १० माधुर्य व ओजदोष , ११ अर्थदोष , १२ उपदेशदोष , १३ क्रियादोष व १४ अकांक्षा दोष.

चौदा विद्या -

( अ ) १ ऋग्वेद , २ यजुर्वेद , ३ सामवेद , ४ अथर्ववेद हे चार वेद व १ छंद , २ शिक्षा ३ व्याकरण , ४ निरुक्त , ५ ज्योतिष व ६ कल्प - हीं सहा वेदांगें आणि १ न्याय , २ मीमांसा , ३ पुराणें व ४ धर्मशास्त्र - हीं सर्व मिळून चौदा विद्या होत .

( आ ) १ आत्मज्ञान , २ वेदपठण , ३ धनुर्विद्या , ४ लिहिणें , ५ गणित , ६ पोहणें , ७ विणणें , ८ शस्त्र धरणें , ९ वैद्यक , १० ज्योतिष , ११ रमलविद्या , १२ सूपशास्त्र , १३ गायन व १४ गारुड . ( मूळ स्तंभ , ) ( इ ) १ ब्रह्मज्ञान , २ रसायन , ३ श्रुतिकथा , ४ विद्यक , ५ नाटय , ६ ज्योतिष , ७ व्याकरण , ८ धनुर्विद्या , ९ जलतरण , १० कामशास्त्र , ११ सामुद्रिकशास्त्र , १२ तन्त्रशास्त्र , १३ मंत्रशास्त्र आणि १४ परस्वहरण.

चौदा वेग मानव शरीरांतले - १ अधो वायुवेग , २ रेचन ( मल ) वेग , ३ मूत्रवेग , ४ ढेकर , ५ शिंक , ६ तृषा , ७ क्षुधा , ८ निद्रा , ९ खोकला . १० श्रमजनित श्वासवेग , ११ जांभई , १२ अश्रुवेग , १३ वमन ( ओकारी ) आणि १४ कामवेग . या वेगांच अवरोअध केला असतां शरीरांत विकृति निर्माण होते .

चौदा शिलाशासन लेख व विषय ( अशोकाचे )- १ अहिंसा , २ धार्मिक कृत्यें , ३ अधिकार्‍याची पंचवार्षिक फिरती , ४ धर्माचरण , ५ धर्म महासभा , ६ कामाचा उरक , ७ धार्मिक गुण , ८ धर्मयात्र , ९ मंगल समारंभ , १० यश व कीर्ति , ११ दानधर्म , १२ परमतसहिष्णुता , १३ धर्मविजय व १४ उपसंहार , असे चौदा महत्त्वाचे शिलाशासन लेख सर्व भारतांत अनेक ठिकाणीं आढळले असून त्यावरून भारताच्या प्राचीन इतिहासाची महत्त्वाची माहिती मिळते .

चौदा शुभयोग - १ आनंद , २ प्रजापति , ३ सौम्य , ४ घ्वज , ५ श्रीवत्स , ६ छत्र , ७ मित्र , ८ मानस , ९ सिद्धि , १० शुभ , ११ अमृत , १२ मातंग , १३ स्थिर व १४ वर्धमान . हे चौदा संपूर्ण शुभयोग मानले आहेत .

चौदा शैव ( वेदकालीन )- १ दुर्वास , २ विश्वामित्र , ३ चतुरानन , ४ मार्कंडेय , ५ इंद्र , ६ बाणासुर , ७ नारायण , ८ कार्तिकेय , ९ दधिचि , १० श्रीराम , ११ कण्व , १२ भार्गव , १३ बृहस्पति व १४ गौतम.

चौदा समाधिस्थानें चांगदेवाचीं - १ ब्रह्मगिरि , २ पुण्यस्तंभ , ३ नारायण डोह , ४ गिरनार , ५ निर्मळ , ६ प्रयाग , ७ निर्गुंद , ८ सेतुबंध , ९ जगन्नाथपुरी , १० मणिपुरी , ११ चंद्रगिरि , १२ शरय़ूतीर , १३ अविमुक्त क्षेत्र ( वाराणशी ) व १४ गोदातीरां पुणतांबें , चांगदेव महायोगी होतो .

दर शंभर वर्षांनीं योगसामर्थ्यांनें जुना देह टाकून नवा देह धारण करीत . अशा रीतीनें ते चवदाशें वर्षें जगले . शेवटची समाधि पुणतांबे येथें गोदातीरीं आहे .

चौदा सहजप्रवृत्ति व त्यांच्या जोडीनें प्रगट होणार्‍या भावना - १ विमोचन प्रवृत्ति - भीति , २ युद्ध प्रवृत्ति - राग , ३ जुगुप्सा प्रवृत्ति - तिटकारा , ४ वात्सल्य प्रवृत्ति - मृदुभाव , ५ याचना प्रवृत्ति - आर्तभाव , ६ संभोग , प्रवृत्ति - कामभाव , ७ आत्मसमर्पण प्रवृत्ति - हीनभाव , ८ जिज्ञासा प्रवृत्ति - आश्वर्य , ९ आत्मविधान प्रवृत्ति - अहंभाव , १० संध प्रवृत्ति - एकाकी भाव , ११ अन्नसंशोधन प्रवृत्ति - क्षुधा , १२ निर्माण प्रवृत्ति - कर्तृभाव , १३ संपादन प्रवृत्ति - स्वाम्यभाव व १४ हास्य प्रवृत्ति - विनोदभाव.

चौदा हेर प्राणिमात्रांच्या वर्तनावर देखरेख करणारे - १ सूर्य , २ चंद्र , ३ बायु , ४ अग्नि , ५ आकाश , ६ भूमि , ७ जल , ८ अंतःकरण , ९ यम , १० दिवस ११ रात्र , १२ सूर्योदय व १३ सूर्यास्त समयींचे संधिकाल आणि १४ धर्म ....

शुभ मुहूर्त

शुभ मुहूर्त
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           कुंडल्या पाहून लग्नांचे मुहूर्त काढले जातात तरी अनेक स्त्रीया विधवा व पुरूष विधूर का होतात?  पत्रिका व कुंडली जुळवून लग्न झालेल्या जोडप्यांचे घटस्फोट होतात,  अकाली मृत्यू होतात असे का?  95% विवाह हे मुहूर्तावर नुसार वेळेवर  लागत नाहित, तरी मुहूर्ताचा आग्रह भटांकडे का धरावा?
           मुहूर्त पाहून निवडणुकीसाठी उभे राहणा-या सर्व उमेद्वारांपैकी एकच निवडून येतो आणि बाकीचे आपटतात. असे का घडते ?  मंत्रीपद मिळाल्यानंतर  मंत्रालयाच्या जबाबदारी स्वीकारण्यासाठी  व खुर्चीवर बसण्यासाठी  शुभ मुहूर्त शोधतात तरी त्यांच्या योजना अयशस्वी का होतात?  मंत्रीपद अल्प कालावधीत का जाते?
          मानवाला किती अपत्य होणार हे  नशिबात ठरलेले असतांना सुद्धा कुटूंब नियोजनद्वारे अपत्य होणे कसे थांबते?  जन्म ठरलेला असतो तर कायदेशीर  गर्भपातामुळे  जन्म कसा थांबतो?  शुभ मुहूर्तावर  मूल जन्माला घातल्यास  वैज्ञानिक,  राष्ट्रपती,  पंतप्रधान  होईल काय?  उच्च शिक्षित डॉक्टर, इंजिनियर  , उद्योजक,  व्यावसायिक  आपल्या कार्यालयाचे  अथवा इमारतीचे  बांधकाम  करतांना, प्रवेश करतांना, व्यवसायास  प्रारंभ करतांना  मूहूर्त पाहूनच सर्व करतात. तरी सुद्धा  कित्येकांना  अपयश येते असे का?
           शुभमुहूर्त  हे थोतांड आहे सत्य नव्हे . ज्यांचा स्वतः वर विश्वास नसतो , तेच लोकं अशा गोष्टींवर विश्वास ठेवतात.
           मुहूर्त पाहणारी पेशवाई  नष्ट झाली आणि कधीही  मुहूर्त न पाहणारी इंग्रजशाही अख्खा  भारत देश गिळून बसली.
           बांधवांनो !  स्वतःवर व स्वकर्तृत्वावर  विश्वास  ठेवा . जर कोणता भट ,पंडित, पुरोहित, ज्योतिषी, बुवा,  बापू,  महाराज,  साधू ,साध्वी तथा वास्तूशास्त्र विशारद  शुभमुहूर्तावरच सर्व काही केल्यास तथा वास्तूशास्त्राप्रमाणेच बांधकाम केल्यास यश येईल असे सांगत असतील तर स्टँम्प पेपवर लिहून देण्यास सांगा.  यश न आल्यास नुकसानभरपाईचा दावा ठोकेल  असा दम द्या. ते तुमच्या जवळही फिरकणार नाहित. कारण त्यांनाही माहित असते हे सर्व थोतांड आहे.   परंतु ज्यांची रोजी रोटी व प्रतिष्ठा अशा बाबींवर विसंबून असते ते शुभमुहूर्त थोतांड आहे हे कसे काय सांगणार?
           बंधू - भगिनिंनो एक लक्षात ठेवा. पृथ्वी स्वत:भोवती फिरते म्हणून दिवस आणि रात्र होतात.  पृथ्वी सूर्याभोवती  फिरते म्हणून महिने आणि वर्ष होतात. जोपर्यंत पृथ्वी स्वतःभोवती  व सूर्या भोवती  फिरत आहे तोपर्यंत सर्वच दिवस, दिशा व वेळ ह्या शुभ आहेत. ज्या दिवशी पृथ्वीचे हे फिरणे थांबेल तोच दिवस आणि  वेळ अशुभ समजावी . तोपर्यंत  सर्वच शुभ आहे. असे समजावे.

मज्जा म्हणजे नक्की काय ?

मज्जा म्हणजे नक्की काय ?
फाईव्ह स्टार मधे जेवण ? ब्रांडेड वस्तू ? सेलिब्रिटी बरोबर फोटो ? फॉरेन टुर ?

छट्ट !!! मुळीच नाही.

आजी आमची गोष्ट सांगताना, "मग काय? भराभरा घरी घेतलो, चहा गेला" असं चुकून बोलून गेल्यावर खी खी करून दिवसभर हसणे म्हणजे मज्जा.

काकू गाणं म्हणत असताना, "भरजरी ग पितांबर दिला सोडून" असं आळवून म्हणायला लागल्यावर, "अगं काकू, सोडून नाही फाडून" असं म्हणून हसत सुटणे म्हणजे मज्जा.

गावाहून परत निघताना 'आज्जी माझा हा बांधलेला झोका सोडू नकोस हा, मी पुन्हा येईन तेव्हा अस्साच हवा इथे" असं आजीला बजावून सांगणे मग सहा महिन्यांनी परत गेल्यावर, आपण येणार म्हणून बहुदा कालच आजीने पुन्हा झोका बांधून घेतलाय हे लक्षात आल्यावर 'आज्जी तू ठेवलास झोका तस्साच? पण मग या दोरीचा रंग का बदलला"? असं विचारून त्याच झोक्यावर मोट्ठे झोके काढणे म्हणजे मज्जा.

शेतात लावणी सुरु असताना चहा घेऊन जाताना, मावशी शंभर वेळा सांगत असे " पाय रोवून घाल, चिखलात रुतला म्हणजे निसटून पडणार नाहीस." हे पूर्ण वेळ लक्षात ठेवत चालल्यावर शेतात आपली सगळी माणसं दिसल्यावर विसरून साटकरून घसरून ढोपरभर पाण्यात पडून चहा सांडवणे म्हणजे मज्जा.

डेक्कन एक्सप्रेस ने येऊन, त्याला भेटून उशिरा घरी जाऊन गालातल्या गालात हसत 'कोयना आज लेट आली' असं सांगणे म्हणजे मज्जा.

'काय ग सदैव घाई तुला घरी जायची'? 'ते काही नाही आता आपण लग्न करूया' असं त्याने म्हणणं म्हणजे मज्जा.

जरासं दुर्लक्ष झाल्यावर मुलीने सबंध अंगाला व्हिक्स फासून घेतल्यावर आणि मग आग होत्येय असं म्हणत ती मोठ्यांदी रडत असताना देखील, हसणे न थांबणे म्हणजे मज्जा.

मुलाला पलंगावर दुप्ट्यावर ठेऊन पटकन सासऱ्यांना वाढायला घ्यावे, मुलाने वरतून धार सोडावी ती डायरेक्ट आजोबांच्या पानात", हे पाहणे म्हणजे मज्जा.

'आज्जी तूच कर गं पुरणपोळी, आईला नाही येत चांगली' असं लेकाने केलेले आईचे कौतुक ऐकणे म्हणजे मज्जा आणि आमच्या आदित्यला घावनाला जाळी पडली नाही तर मुळीच आवडत नाही हो " असे आईने केलेले लेकाचे कौतुक ऐकणे म्हणजे ही मज्जाच.

चुकून आपले कुत्रे आपल्या हातून सुटून एखाद्याच्या मागे लागल्यावर कुत्र्याला धरायला त्याच्या मागे धावणे हि देखील मज्जा.

'मला जाम राग आला होता गं', रात्री लांबच झोपले, पण इतकी थंडी वाजत होती शेवटी म्हंटलं 'मरु दे' बाकीचं उद्या भांडू असं मुलीला सांगणे म्हणजे मज्जा.

सुट्टी संपेपर्यंत तू मला रोज तुला आवडणारा पदार्थ सांगायचा. रोज करणार तुझ्यासाठी, असे म्हणून 'जेवायला काय करावे' हा जटील प्रश्न सहज सोडवून आई तू ग्रेट आहेस हा' अशी स्तुती ऐकणे म्हणजे मज्जा.

माझ्या सगळ्या मज्जा माझ्या माणसांबरोबच्या संवादातून, संबंधातून जन्म घेतात.
सुखाचा शोध अविरत सुरु ठेवावा, दुखः जीवनात येते हे जरी खरे असले तरी काही काळाने बोथट होतेच.
ज्याला स्वतःमधे आणि स्वतःच्या माणसांमध्ये आनंद मिळवता येत नाही, त्याला तो फाइव्ह स्टार हॉटेलात, महागड्या वस्तूंमध्ये, दूर कुठेतरी जाऊन देखील मिळेलच याची काय खात्री?

आज, आत्ता, या क्षणी हे अत्यंत महत्वाचं ………