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सोमवार, ११ जुलै, २०१६

नवविवाहित लड़की का अपनी माँ के लिये एक प्यारा सा खत-

एक नवविवाहित लड़की का अपनी माँ के लिये एक प्यारा सा खत-
प्रिय माँ, हर लड़की की तरह मैं भी बचपन से ही अपने
विवाह को लेकर बड़ी ही उत्साहित रहती थी। अपने
सपनों के राजकुमार के साथ खुशहाल ज़िंदगी बिताने के
अलावा मैं कुछ सोच भी नहीं पाती थी। लेकिन, आज जब
मेरी शादी हो गयी है, मुझे महसूस होता है
कि शादी का मतलब केवल फूलों सी सुंदरता नहीं, अपने
जीवन साथी के साथ बिताए सुन्दर पल ही नहीं!
शादी के और भी मायने हैं। इसमें अनेक जिम्मेदारियाँ,
दायित्व, त्याग, बलिदान और समझौते भी करने होते
हैं। ऐसा नहीं कि मैं जब चाहूँ, तब सोकर जागूँ। मुझसे
उम्मीद रहती है कि मैं परिवार के दूसरे सदस्यों से
पहले उठकर तैयार हो जाऊँ। मैं सारा दिन पैजामे
पहनकर यहाँ-वहाँ नहीं अलसा सकती। मुझे हर समय
तैयार रहना होता है। मैं जब चाहूँ तब बाहर
नहीं जा सकती। मुझे परिवार की ज़रूरतों की ओर
संवेदनशील रहना चाहिए। मैं जब चाहूँ बिस्तर पर
पड़ी नहीं रह सकती। मुझे हर समय सजग और परिवार के
साथ रहना होता है। मैं उम्मीद नहीं कर सकती कि मेरे
साथ किसी राजकुमारी की तरह का व्यवहार हो,
बल्कि मुझे खुद परिवार के दूसरे सदस्यों का ध्यान
रखना होता है। और फिर मैं खुद से पूछती हूँ, “आखिर मैंने
शादी ही क्यों की?” आपके साथ मैं खुश थी, माँ! कभी-
कभी मैं सोचती हूँ कि आपके पास वापस आ जाऊँ और फिर
वही लाड़ और दुलार पाऊँ। मैं फिर से उन्हीं दिनों में
वापस आना चाहती हूँ जब दोस्तों के साथ घूमकर लौटने
पर आपके हाथ के स्वादिष्ट पकवान के मज़े उठाने
को मिलते थे। मैं आपकी गोद में सिर रखकर
जहाँ की सारी चिंताओं को भूल जाना चाहती हूँ।
लेकिन फिर अचानक मुझे महसूस हुआ, अगर आपने
भी शादी न की होती, अगर आपने ज़िंदगी के साथ ये
सारे समझौते न किये होते, तो मेरी ज़िंदगी में ये
खूबसूरत यादें भी तो न होतीं। और अचानक ही, इन
सबका उद्देश्य स्पष्ट हो जाता है- जो आराम,
शांति और खुशियाँ मुझे आपसे मिलीं, वही सब अपने नए
परिवार को लौटाना है। और मुझे विश्वास है कि समय
के साथ मैं भी इस जीवन को वैसे ही प्यार करने लगूंगी,
जैसे आप करती हैं। आपने जो भी बलिदान दिए, समझौते
किये, उन सबके लिये आपको दिल से धन्यवाद, माँ! उनसे
मुझे भी ऐसा ही करने की शक्ति मिलती है। बहुत-बहुत
प्यार!
--सभी बेटियों के लिए एक खूबसूरत लेख। सभी महिलाओं
के सम्मान में... अपने आसपास सभी महिलाओं और
लड़कियों सा सम्मान करें, क्योंकि वे
ही हमारी दुनिया को खूबसूरत बनाती हैं।

रविवार, २६ जून, २०१६

अच्छी बहू ....

अच्छी बहू बनना चाहती है तो
       रखें इन बातों का ध्यान।

➡ जब भी कोई लड़की शादी करके ससुराल आती है तो उसके मन में कई उमंगें उठ रही होती हैं कि वहां ऐसा होगा, वैसा होगा ।उसे लगता है कि जो अभी तक वह फिल्मों में देखती आई है, वैसी ही शानदार जिंदगी उसकी भी होगी लेकिन धीरे-धीरे जब जिम्मेदारियों का बोझ उस पर पड़ने लगता है तो उसे विवाह की वास्तविकता का बोध होता है । इसमें कोई शक नहीं है कि शादी एक ऐसा बंधन है जिसमें जीवन के अंतिम समय तक प्यार कायम रहता है । एक औरत चाहे तो अपने रिश्ते को बिगाड़ सकती है और चाहे तो अपनी सूझबूझ से इस रिश्ते को कभी न टूटने वाले पक्के धागे में पिरोकर रख सकती है ।
जब भी कोई लड़की बहु के रूप में अपने जीवन की शुरुआत करती है तो वह एक परफैक्ट बहू बनना चाहती है यदि आप भी अपने ससुराल की परफेक्ट बहु बनना चाहती है तो इन बातों को जरुर याद रखे।

➡ अपने सास-ससुर को माता-पिता जैसा सम्मान और देवर-ननद को भाई-बहन जैसा स्नेह दें । उनकी पसंद-नापसंद का ध्यान रखें और कभी भी शिकायत का मौका न दें ।

➡ आज तक घर के सभी फैसले आपकी सास लेती आई हैं । आप चाहे कितनी भी पढ़ी-लिखी या समझदार हों, कभी भी उनके मांगे बिना अपनी सलाह न दें । हां, यदि आपको लगे कि कुछ बेहतर हो सकता है तो अकेले में उनके सामने एक बार अपना पक्ष अवश्य रखें ।

➡ आपके पति पर घर की कई जिम्मेदारियां हैं । आपके पति से पहले वे घर के बेटे हैं । शादी होते ही उन्हें अपने पल्लू से बांधने की कोशिश न करें । कभी वह आपके लिए समय न निकाल पा रहे हों तो उन पर किसी तरह का कमैंट न करें और न ही उनके साथ के लिए कोई जिद करें । वह आपके हैं और सारी जिंदगी आपके ही रहने वाले हैं । समय साथ बिताने के लिए पूरी रात आपकी अपनी है । यदि आप कहीं बाहर घूमने जाते भी हैं तो घर आते समय कुछ खाने का सामान सबके लिए लेकर आएं । ऐसे में सब को लगेगा कि आपको उन सब का भी ख्याल है ।

➡ हर घर में सौ तरह की बातें होती हैं, उन्हें पर्दे में रखना ही बेहतर है । कभी भी ससुराल की बातें मायके में और मायके की बातें ससुराल में न करें । कभी-कभी बात सामने आने से दोनों पक्षों के लिए स्थिति शर्मसार हो सकती है और आप पर से भी विश्वास उठ सकता है । अत: किसी भी तरह की चुगलखोरी से दूर रहें ।

➡ रिश्तेदारों व पड़ोसियों की आदत होती है बहू के सामने सास की और सास के सामने बहू की बुराई करना । ऐसी अवस्था में पहली बार में ही बुराई करने वाले को चुप करा दें ।

➡ यदि ननद-देवर छोटे हैं और पढ़ रहे हैं तो उनकी पढ़ाई में मदद करें । जेठ-जेठानी हैं तो उन्हें भी बड़े भाई -भाभी जैसी इज्जत दें ।

➡ एक संस्कारी बहू के रूप में घर के सभी रीति-रिवाजों को पूरी श्रद्धा से निभाएं । अपनी सास से सभी त्यौहारों को पूजने और पकवान आदि बनाने के बारे में सीखें । घर में रोज पूजा करें ताकि आध्यात्मिकता और सकारात्मकता बनी रहे ।

➡ पति के ऑफिस से आते ही उनके कान न भरें । उन्हें चाय और बिस्किट्स दें व जब वे आराम कर लें और रिलैक्स हो जाएं तब उन्हें समस्या से अवगत कराएं ।

➡ यदि आप पढ़ी-लिखी हैं तो नौकरी करके घर चलाने में उनकी आर्थिक रूप से सहायता कर सकती हैं । इस बारे में सास-ससुर की अनुमति भी आवश्यक है ।

➡ पति की इज्जत करें, उन्हें खूब प्यार करें व उनकी हर जरूरत का ध्यान रखें ।

➡ यदि आप खाना बनाने में निपुण हैं तो नए-नए व्यंजन बना कर सब का दिल जीतने की कोशिश करें । घर को भी साफ-सुथरा रखें और हरेक सदस्य की जरूरत का सामान यथास्थान रखें ।

➡ मायके से मिले सामान की तारीफ न करें और न कभी मायके की अमीरी की डींगें हांकें । अपनी सास को अपनी हमराज बनाकर रखें व आप भी पूरी ईमानदारी से उनका साथ निभाएं ।

➡ यदि सास कभी आपको डांट दें तो पलट कर जवाब न दें । सोचें कि जब आपकी मां आपको डांटती थी तो क्या तब भी आप ऐसा करते थे ? यदि सास आपको कुछ समझा रही हैं तो बजाय गुस्सा करने के उनकी बातें ध्यान से सुने, आखिर वे आपके भले की ही बात कर रही होती हैं ।

➡ युवा देवर या ननद यदि गलत राह पर चलने लगें तो एक सही मार्गदर्शक के रूप में उनका मार्गदर्शन करें । उन्हें अच्छे-बुरे में फर्क समझाएं और बताएं कि कैसे इस वक्त सिर्फ उन्हें अपने करियर की ओर ध्यान देना है ।

✅ सच मानें, अगर आप अपने जीवन में छल-कपट से दूर रह कर विश्वास और प्यार के रंग भरेंगी तो आप सब की फेवरिट बन जाएंगी और सब आप से प्यार करेंगे।

शुक्रवार, ३ जून, २०१६

नहाने का वैज्ञानिक तरीका

*नहाने का वैज्ञानिक तरीका*

*अपने स्वस्थ एवं सुरक्षित जीवन के लिये इस पोस्ट को अवश्य पढे और पढ़ायें.*

*क्या आपने कभी अपने आस पास ध्यान से देखा या सुना है कि नहाते समय बुजुर्ग को लकवा लग गया?*

*दिमाग की नस फट गई ( ब्रेन हेमरेज), हार्ट अटैक आ गया |*

*छोटे बच्चे को नहलाते समय वो बहुत कांपता रहता है, डरता है और माता समझती है की नहाने से डर रहा है,*

*लेकिन ऐसा नहीँ है; असल मे ये सब गलत तरीके से नहाने से होता है ।*

*दरअसल हमारे शरीर में गुप्त विद्युत् शक्ति रुधिर (खून) के निरंतर प्रवाह के कारण पैदा होते रहती है, जिसकी स्वास्थ्यवर्धक प्राकृतिक दिशा ऊपर से आरम्भ होकर नीचे पैरो की तरफ आती है।*

*सर में बहुत महीन रक्त् नालिकाये होती है जो दिमाग को रक्त पहुँचाती है।*

*यदि कोई व्यक्ति निरंतर सीधे सर में ठंडा पानी डालकर नहाता है तो ये नलिकाएं सिकुड़ने या रक्त के थक्के जमने लग जाते हैं*

*और जब शरीर इनको सहन नहीं कर पाता तो ऊपर लिखी घटनाएं वर्षो बीतने के बाद बुजुर्गो के साथ होती है।*

*सर पर सीधे पानी डालने से हमारा सर ठंडा होने लगता है, जिससे हृदय को सिर की तरफ ज्यादा तेजी से रक्त भेजना पड़ता है, जिससे या तो बुजुर्ग में हार्ट अटैक या दिमाग की नस फटने की अवस्था हो सकती है।*

*ठीक इसी तरह बच्चे का नियंत्रण तंत्र भी तुरंत प्रतिक्रिया देता है जिससे बच्चे के काम्पने से शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है , और माँ समझती है की बच्चा डर रहा है ।*

*गलत तरीके से नहाने से बच्चे की हृदय की धड़कन अत्यधिक बढ़ जाती है स्वयं परीक्षण करिये।*
.
*तो आईये हम आपको नहाने का सबसे सही तरीका बताते है |*

*बाथरूम में आराम से बैठकर या खड़े होकर सबसे पहले पैर के पंजो पर पानी डालिये , रगड़िये, फिर पिंडलियों पर, फिर घुटनो पर, फिर जांघो पर पानी डालिये और हाथों से मालिश करिये|*

*फिर हाथो से पानी लेकर पेट को रगड़िये | फिर कंधो पर पानी डालिये, फिर अंजुली में पानी लेकर मुँह पर मलिए | हाथों से पानी लेकर सर पर मलिए।*

*इसके बाद आप शावर के नीचे खड़े होकर या बाल्टी सर पर उड़ेलकर नहा सकते है।*

*इस प्रक्रिया में केवल 1 मिनट लगता है लेकिन इससे आपके जीवन की रक्षा होती है। और इस 1 मिनट में शरीर की विद्युत प्राकृतिक दिशा में ऊपर से नीचे ही बहती रहती है क्योंकि विद्युत् को आकर्षित करने वाला पानी सबसे पहले पैरो पर डाला गया है।*

*बच्चे को इसी तरीके से नहलाने पर वो बिलकुल कांपता डरता नहीं है।*

*कृपया इस पोस्ट को आगे भेजें
,यह छोटे बच्चों ,बुज़ुर्गों के लिये बहुत उपयोगी है | डा0 उदयवीरसिंह जेवर*

शुक्रवार, २० मे, २०१६

बेटी .....पराई नहीं लगती.

बेटी शादी के मंडप में ...
या ससुराल जाने पर .....
पराई नहीं लगती.

Magar ......

जब वह मायके आकर हाथ मुंह धोने के बाद बेसिन के पास टंगे नैपकिन के बजाय अपने बैग के छोटे से रुमाल से मुंह पौंछती है , तब वह पराई लगती है.

जब वह रसोई के दरवाजे पर अपरिचित सी ठिठक जाती है , तब वह पराई लगती है.

जब वह पानी के गिलास के लिए इधर उधर आँखें घुमाती है , तब वह पराई लगती है.

जब वह पूछती है वाशिंग मशीन चलाऊँ क्या तब वह पराई लगती है.

जब टेबल पर खाना लगने के बाद भी बर्तन खोल कर नहीं देखती तब वह पराई लगती है.

जब पैसे गिनते समय अपनी नजरें चुराती है तब वह पराई लगती है.

जब बात बात पर अनावश्यक ठहाके लगाकर खुश होने का नाटक करती है तब वह पराई लगती है.....

और लौटते समय 'अब कब आएगी' के जवाब में 'देखो कब आना होता है' यह जवाब देती है, तब हमेशा के लिए पराई हो गई सी लगती है.

लेकिन गाड़ी में बैठने के बाद
जब वह चुपके से
अपनी कोर सुखाने की कोशिश करती है तो वह परायापन एक झटके में बह जाता है ...

Dedicate to all Girls..

नहीं चाहिए हिस्सा भइया
मेरा मायका सजाए रखना
राखी भैयादूज पर मेरा
इंतजार बनाए रखना

कुछ ना देना मुझको चाहे
बस प्यार बनाए रखना
पापा के इस घर में
मेरी याद बसाए रखना

बच्चों के मन में मेरा
मान बनाए रखना
बेटी हूँ सदा इस घर की
ये सम्मान संजोए रखना।

मंगळवार, १७ मे, २०१६

बेटी हिरा आहेस

✍�� जरूर वाचा

☄" एकदा एका मुलीने तक्रार केली बापाकडे, मलाच का बंधने ? जाऊ नको कुणीकडे....."

" बाप बोलला बेटी म्हणणे तुझं पटतयं चल जरा बाहेर, आत खूप उकडंतयं....."

���� पेठेतून जाताना दिसलं दुकान लोखंडाचं, बाहेरच पडल होत, अवजड सामान लोहाचं, बाप बोलला ,बेटी ! हे, ऊनपावसात इथंच असतं तरी पण याला काही होत नसतं, किमतीत पण याच्या अधिक उणं होत नसतं......,

जरा पुढे जाताच ,ज्वेलरी शाँप दिसलं
आत जाऊन मग ,हिर्यचा मोल पुसलं
तिजोरीतून बंद पेटी ,हळूवार पुढे मांडली त्याच्या झगमगाटात ,नजरच दिपली, सराफ बोलला किमती आहे,फार जपावं लागतं जरा सुद्धा चरा पडता ,मोल याचं घटतं
काळजी घेऊन खूप,जपून ठेवावं लागतं तिजोरीच्या आत , लपवावं लागतं.......,

फिरून घरी येताच, बाप बोलला "बेटी! तूच तर माझी, हिर्याची पेटी
सांग तुला जपण्यात ,काय माझं चुकतं तुझ्यामुळेच माझं, घर सारं झगमगतं"

"तुझा दादा म्हणजे लोखंड, जपावं लागत नाही तू म्हणजे अनमोल हिरा, सांग चुकतं का काही
तुझ्यामुळेच घर प्रकाशित,आमचा तु अभिमान, तुझ्यासाठी काळीज तुटतं, तु जीव की प्राण"

" बस्स! करा बाबा "ऎकवत आता नाही तुमच्याकडे माझी ,तक्रार मुळीच नाही मीच मला आता ,जीवापाड जपेन हिर्याच्या तेजानं, चौफेर चमकेन."

  पटवून द्या तिला बेटी! तू हिरा आहेस
आमच्या आनंदाचा तू झरा आहे
म्हणुन जपाव लागत.....!

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सोमवार, ९ मे, २०१६

लग्न म्हणजे काय असतं...!

लग्न म्हणजे काय असतं...!

तो कितीही वेंधळा असला तरी
त्याला सांभाळून घ्यायचं असतं...!!
तिने कसाही स्वयंपाक केला तरी
त्याला "मस्त" म्हणायचं असतं...!

लग्न म्हणजे काय असतं...!
क्रिकेटमध्ये कितीही interest नसला तरी
त्याच्यासाठी ते enjoy करायचं असतं...!!
तुळशीबागेत जायचा कंटाळा आला असला तरी तिच्यासोबत आनंदाने जायचं असतं...!!!

लग्न म्हणजे काय असतं...!
तो कितीही "म्हातारा" झाला तरी
त्याला चिरतरूण भासवायचं असतं...!!
"मी जाड झालेय का...?"
या वाक्याला कधीही "हो" म्हणायचं नसतं...!!!

लग्न म्हणजे काय असतं...?
दोन्ही घरच्या नात्यांना
आपुलकीने जपायचं असतं...!
वेळप्रसंगी आपल्या इच्छांना
हसत हसत विसरायचं असतं...!!
थोडक्यात काय...???
लग्न लग्न म्हणजे काय असतं...???

छोट्या-मोठ्या गोष्टींमध्ये केलेलं compromise असतं...!
कारण "we will grow old together"
असं एकमेकाला केलेलं promise असतं...!!

लग्न हे सुद्धा अंदाजावर जन्म घेणारेच नाते असते...!
तिथली आकडेवारी ही चुकायचीच...!!
पण आपला साथीदार हा इतकाही वाईट नाही हे जितक्या कमी वेळात जाणून घ्याल, तितक्या जास्त वेळाचा सुखाचा संसार पुढे आपली वाट पाहत असतो....!!!!!!

शब्दांच्या चकमकीत नाती मारली जातात...!
शब्दांची ओंजळ बनवा...!
थोडंसं गळेल पण तुटणं टळेल...!!
लग्नानंतर खरंतर आपल्या जोडीदाराला मिठीत ठेवण्यासाठी धडपड व्हायला हवी,
पण इथे 'मिठीत' नाही तर 'मुठीत' ठेवण्यासाठी धडपड चालू असते...!!!

संसार हे मुठीचे नाही तर मिठीचे प्रकरण आहे हे ज्यांना कळले,
ते संसारात जिंकतात...!
नाती मुठीत घुसमटतात, मिठीत फुलतात...!!

शुक्रवार, १ एप्रिल, २०१६

बेटी

विधाता  ने जब किसी
बेटी  को बनाया होगा,
मानव  निर्माण  के लिए  इस धरती  पर छोडने  आया  होगा......
उस दिन विधाता  भी सारी  रात  नहीं  सोया  होगा......
और  बेटी  की जुदाई  मे फुट  फुट  कर रोया  होगा......

कइ जन्मो की  जुदाई  के  बाद  बेटी  का जन्म होता है ......
इसलिए  तो कन्यादान  करना  सबसे  बड़ा  पुण्य  होता है.......

बेटी  पिता व पति दोनों  के घर  का सम्मान  रखती है,
चाहे  पत्थर  पडे हो,  चेहरे  पे मुस्कान  रखती  है.........

बेटी  की आत्मा  से उस दिन  भी  दुआओं  के फुल  बरसते है........
जिस  दिन राखी के कच्चे धागे भाई  की कलाई  को तरसते है.......

माँ  बाप के दखल  से बेटी  के कई ख्वाब  पुरे नहीं  होते.......
फिर  भी  बेटी  की नजर  मे  माँ  बाप  कभी  बुरे  नहीं  होते......

दिल  मे खुशी,  मगर  चेहरे  पर  गम की परछाई  होती है......
कठोर  दिल  बाप  भी  रो देता है,  जब  बेटी  की विदाई  होती  है.....

बेटी  माँ  बाप  की खुशी  की हमेशा  दुआ माँगती है......
वह सुख मे हो या दुख  मै चौखट  पर उनका  रास्ता  निहारती है........

है ईश्वर......
मैरा आपसे  बस इतना  ही है कहना.......
आप कुछ  दो या ना दो, 
हर घर  मै एक  प्यारी  सी बेटी  जरुर  देना.........

सोमवार, ७ मार्च, २०१६

जागतिक महिला दिन ... ८ मार्च


जागतिक महिला दिन ... ८ मार्च
आज जागतिक महिला दिन..!!! सर्वप्रथम मनात विचार आला की महिला दिन साजरा करायचे प्रयोजन काय असावे ?
 या दिवसाच्या निमित्ताने तरी तिला समाजात कुठेतरी स्थान मिळावे हे तर नाही ना ? पण मग लक्षात आले की जशी आपण थोरा- मोठ्यांची स्मृति मनात जपतो... त्याचप्रमाणे महिलांच्या कर्तृत्वाला हा salute आहे ....आज पुरुषांच्या खांद्याला खांदा लावून स्त्रिया प्रत्येक क्षेत्रात पुढे आहेतच ...पण त्याचबरोबर कुटुंब जपण्याचे मोठे काम फक्त महिलाच करू जाणे  !
फार पूर्वी स्त्रियानी फ़क्त चुल अणि मूल बघायचे आणि पुरुषानी प्रपंच चालवायचा हा अलिखित नियम होता। स्त्रिया फ़क्त उत्सव अणि समारंभ या निमित्तानेच घराबाहेर पडायच्या। त्या वेळीही गार्गी अणि मैत्रेयि सारख्या उच्च शिक्षित स्त्रिया होत्या... पण फारच कमी। पंडिता रमाबाई, सावित्रीबाई फुले यानि स्त्री शिक्षणाची दालने योग्य अर्थाने खुली केलि।
त्यानंतर स्त्रियानी मागे बघितलेच नाही। प्रत्येक क्षेत्रात स्त्रिया आज पुरुषांच्या एक पाऊल पुढेच आहेत। अगदी अवकशापर्यंत पोचलेल्या कल्पना चावला, सुनीता विल्यम्स , समाजसेविका मेधा पाटकर , डॉ.रानी बंग , पंतप्रधानपदी विराजमान असलेल्या इंदिरा गाँधी , पुलिस क्षेत्रात भरीव कामगिरी केलेल्या किरण बेदी ..... एक नव्हे तर कितीतरी नावे आपल्यासाठी आदर्शवत आहेत। आपले राष्ट्र निर्माण करण्यात त्यांचा फार मोठा वाटा आहे। पण तितक्याच महान आहेत त्या राजमाता जिजाबाई... मनावरील संस्कार, त्याग, चातुर्य , बुद्धिमत्ता, वीरता , सामाजिक बांधिलकी या सर्व गुणांची देण त्यानी शिवरायाना सुपूर्त केलि। त्यानी शिवाजी महाराजाना घडविले , म्हणून स्वराज्य निर्माण होऊ शकले।
घराची गरज पूर्ण करण्यासाठी नोकरीनिमित्त बाहेर पडलेली स्त्री, करियर च्या कधी मागे लागली , ते समजलेच नाहीं... पुरुषांच्या बरोबरीने खांद्याला खांदा लावून काम करताना , कदाचित आजच्या स्त्रीला याचा विसर पडतो आहे...की तिची सर्वात मोठी करियर म्हणजे चांगली पीढ़ी निर्माण करणे.... हे काम करण्यासाठी लागणारी त्याग, प्रेम, चिकाटी, सहनशीलता या गुणांची देण जेवढी स्त्री कड़े आहे तेवढी पुरूषाकडे नाही। आपल्या मुलांचे अतिशय चांगल्या प्रकारे संगोपन करून सुजाण नागरिक निर्माण करण्याचा प्रयत्न करणे ही सुद्धा राष्ट्रकार्याला मदतच आहे। मुलांचा सर्वांगीण विकास करणे ही आज कालाची गरज आहे। उत्तम आरोग्य, योग्य शिक्षण , उत्तम संस्कार याचबरोबर सामाजिक बन्धिलाकिची जाणीव आजच्या पिढीत निर्माण करणे आज गरजेचे आहे।
खरी गरज आहे ती महिलेने दृष्टी बदलण्याची ... मग ती नविन सून असुदे की नवीन जन्मलेली मुलगी असुदे।
राम खीर खा...
सीता काम कर....
भुवन पाठशाला जा...
गीता पानी ला...
मदन बगीचे में खेल॥
मीना माँ की मदद कर...
हे बदलणे आपल्याच हातात आहे। अज या महिला दिनानिमित्त आपल्याला गुढी उभारायची आहे ती बदलाची... तरच खर्या अर्थाने आजचा महिला दिन साजरा होईल....

महिला दिन......गरज आहे ती प्रत्येक महिलेने आपला आत्म सन्मान जपण्याची...

ती  आई  आहे,...  ती ताई आहे,
ती मैत्रीण आहे, ....ती पत्नी आहे,
ती मुलगी आहे, ...ती जन्म आहे,
ती माया  आहे, तीच सुरुवात आहे, आणि  सुरुवात  नसेल तर बाकी सारं व्यर्थ आहे.

जागतिक महिला दिनाच्या सर्वांना आधारवड परिवार व मासिक सैनिक दर्पण तर्फे हार्दिक शुभेच्छा..!!!

८ मार्च - जागतिक महिला-दिन


८ मार्चक महिला-दिन - इतिहास

संपूर्ण अमेरिका आणि युरोपसहित जवळजवळ जगभरच्या स्त्रियांना विसाव्या शतकाच्या सुरुवातीपर्यंत मतदानाचा हक्क नाकारलेला होता. पुरुषप्रधान व्यवस्थेतील स्त्री-पुरुष विषमतेचे हे एक ढळढळीत उदाहरण. या अन्यायाविरुद्ध स्त्रिया आपापल्या परीने संघर्ष करीत होत्या. १८९० मध्ये अमेरिकेत मतदानाच्या हक्कासंदर्भात `द नॅशनल अमेरिकन सफ्रेजिस्ट असोसिएशन' स्थापन झाली. परंतु ही असोसिएशनसुद्धा वर्णद्वेषी आणि स्थलांतरितांविषयी पूर्वग्रह असणारी होती. दक्षिणेकडील देशांना काळया मतदात्यांपासून आणि उत्तर व पूर्वेकडील देशांना तेथील बहुसंख्य देशांतरित मतदात्यांपासून वाचवण्याकरता स्त्रियांना मतदानाच्या हक्क मिळायलाच हवा, अशा प्रकारचे आवाहन ती करत होती. अर्थात या मर्यादित हक्कांना बहुसंख्य काळया वर्णाच्या आणि देशांतरित कामगार स्त्रियांनी जोरदार विरोध केला आणि क्रांतिकारी मार्क्सवाद्यांनी केलेल्या सार्वत्रिक प्रौढ मतदानाच्या हक्कांच्या मागणीला पाठिंबा दिला. १९०७ साली स्टुटगार्ड येथे पहिली आंतरराष्ट्रीय समाजवादी महिला परिषद भरली.

त्यामध्ये क्लारा झेटकिन या अतिशय लढाऊ बाण्याच्या, झुंजार कम्युनिस्ट कार्यकर्तीने `सार्वत्रिक मतदानाचा हक्क मिळवण्यासाठी संघर्ष करणे हे समाजवादी स्त्रियांचे कर्तव्य आहे.' अशी घोषणा केली. ८ मार्च १९०८ रोजी न्यूयॉर्कमध्ये वस्त्रोद्योगातील हजारो स्त्री-कामगारांनी रुटगर्स चौकात जमून प्रचंड मोठी ऐतिहासिक निदर्शने केली. दहा तासांचा दिवस आणि कामाच्या जागी सुरक्षितता ह्या मागण्या केल्या. या दोन मागण्यांबरोबरच लिंग, वर्ण, मालमत्ता आणि शैक्षणिक पार्श्वभूमीनिरपेक्ष सर्व प्रौढ स्त्री-पुरुषांना मतदानाचा हक्क मिळावा अशी मागणीही जोरकसपणे केली. अमेरिकन कामगार स्त्रियांच्या या व्यापक कृतीने क्लारा झेटकिन अतिशय प्रभावित झाली. १९१० साली कोपनहेगन येथे भरलेल्या दुसऱ्या आंतरराष्ट्नीय समाजवादी महिला परिषदेत, ८ मार्च १९०८ रोजी अमेरिकेतील स्त्री-कामगारांनी केलेल्या ऐतिहासिक कामगिरीच्या स्मरणार्थ, ८ मार्च हा `जागतिक महिला-दिन' म्हणून स्वीकारावा असा जो ठराव क्लाराने मांडला, तो पास झाला. यानंतर युरोप, अमेरिका वगैरे देशात सार्वत्रिक मतदानाच्या हक्कासाठी मोहिमा उघडल्या गेल्या. त्यांचा परिणाम म्हणून १९१८ साली इंग्लंडमध्ये व १९१९ साली अमेरिकेत या मागण्यांना यश मिळाले.

भारतात मुंबई येथे पहिला ८ मार्च हा महिला दिवस १९४३ साली साजरा झाला. १९७१ सालच्या ८ मार्चला पुण्यात एक मोठा मोर्चा काढण्यात आला होता. पुढे १९७५ हे वर्ष युनोने `जागतिक महिला वर्ष' म्हणून जाहीर केले. त्यानंतर स्त्रियांच्या समस्या ठळकपणे समाजासमोर येत गेल्या. स्त्रियांच्या संघटनांना बळकटी आली. स्त्रिया `बोलत्या' व्हायला लागल्या. बदलत्या सामाजिक, आर्थिक, राजकीय, सांस्कृतिक परिस्थितीनुसार काही प्रश्नांचे स्वरूप बदलत गेले तशा स्त्री संघटनांच्या मागण्याही बदलत गेल्या.