नई दिल्ली। देश के राष्ट्रगान जन-गण-मन के बारे में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने बेहद सनसनीखेज खुलासा किया। काटजू ने राष्ट्रगान के रचयिता रत्न रवींद्र नाथ टैगोर को अंग्रेजों की कठपुतली बताया है। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रगान देश के गौरव के लिए नहीं अपितु अंग्रेजों की चापलूसी में लिखा गया है।
काटजू ने कहते हैं कि दरअसल जिस राष्ट्रगान को हम बहुत गर्व के साथ गाते हैं वह दरअसल देश के सम्मान में लिखा गया गीत नहीं। यह गीत ब्रिटिश किंग जॉर्ज पंचम के सम्मान में टैगोर की चापलूसी का गीत है।
काटजू ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि टैगोर ने राष्ट्रगान को भगवान की प्रशंसा के लिए नहीं बल्किर ब्रिटिश किंग जॉर्ज पंचम के सम्मान में लिखी थी। इस तथ्य के समर्थन में उन्होंने कुछ तथ्य भी लोगों के सामने रखे हैं।
राष्ट्रगान के विरोध में काटजू के तर्क
राष्ट्रगान को जन-गण-मन को 1911 में लिखा गया था जब ब्रिटिश किंग जॉर्ज पंचम और उनकी पत्नी क्वीन मैरी भारत आयी थी।
राष्ट्रगान में कहीं भी भारत माता के गौरव का गुणगान नहीं किया गया है।
राष्ट्रगान में अधिनायक शब्द का इस्तेमाल किया गया है जिसका मतलब है राजा के भगवान और 1911 में भारत का राजा कौन था।
राष्ट्रगान में भारत भाग्य विधाता शब्द का इस्तेमाल किया गया है, और भारत के भाग्य का निर्माण करने वाला कौन था। उस वक्त भारत पर अंग्रेजों का राज था ऐसे में अंग्रेजों को ही भारत के भाग्य का निर्माता कहा गया है।
राष्ट्रगान को पहली बार कलकत्ता कांफ्रेस के दूसरे दिन कांग्रेस पार्टी में 1911 में गाया गया था।
इस कांफ्रेस को मुख रूप से जॉर्ज पंचम को विशेष स्वागत और सम्मान देने के लिए बुलाया गया था। इसके साथ ही 1905 में बंगाल के विभाजन को रोकने के लिए भी उनके सम्मान में यह कांफ्रेस बुलायी गयी थी।
कलकत्ता अधिवेशन के दूसरे दिन का मुख्य एजेंडा विशेष रूप से पहले से ही जॉर्ज पंचम को सम्मान देने के लिए तय किया गया था, यह नहीं इस दिन को जार्ज पंचम के सम्मान के लिए सभी सदस्यों ने एकमत से सहमति दी थी।
टैगोर ने खुद को देशभक्त बताने के लिए राष्ट्रगान को 1937 में भारत की गौरवगाथा बताया था। उन्होंने इस बात से इनकार कर दिया कि यह गीत जॉर्ज पंचम के सम्मान में लिखा गया था।
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