आप भी जानिये चंद्रशेखर 'आज़ाद' से जुड़ा कांग्रेस सरकार का यह खूनी तांडव..
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भारत माता के अजर अमर बलिदानी सपूत चंद्रशेखर आज़ाद और उनकी माता की पुण्य स्मृतियों के साथ
यमराजी कांग्रेस सरकार द्वारा किये गए खूनी तांडव
के राक्षसी सच से परिचित होंने से पहले चंद पंक्तियों में उस सच की पृष्ठभूमि से भी परिचित हो लीजिये...
27 फ़रवरी 1931 को चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के कुछ वर्षों बाद उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी. आज़ाद के भाई की मृत्यु भी इससे पहले ही हो चुकी थी. अत्यंत निर्धनावस्था में हुई उनके पिता की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माताश्री उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बीनकर लाती थी तथा कंडे और लकड़ी बेचकर अपना पेट पालती रहीं. लेकिन वृद्ध होनेके कारण इतना काम
नहीं कर पाती थीं कि भरपेट भोजन का प्रबंध कर सकें. अतः कभी ज्वार कभी बाज़रा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं क्योंकि दाल चावल गेंहू और उसे पकाने का ईंधन खरीदने लायक धन कमाने की
शारीरिक सामर्थ्य उनमे शेष ही नहीं रह गयी थी ।
उनकी यह स्थिति देश को आज़ादी मिलने के 2 वर्ष बाद (1949 ) तक जारी रही.
(यहां आज की पीढ़ी के लिए उल्लेख कर दूँ कि उस दौर में ज्वार और बाज़रा को ''मोटा अनाज'' कहकर बहुत उपेक्षित और हेय दृष्टि से देखा जाता था और इनका मूल्य गेंहू से बहुत कम होता था )
अगस्त 1947 तक कभी जेल कभी फरारी में फंसे रहे चंद्रशेखर आज़ाद के क्रन्तिकारी साथी सदाशिव राव मलकापुरकर को जब आज़ाद की माता की इस स्थिति के विषय में पता चला तो वे उनको लेने उनके घर पहुंचे. उस स्वाभिमानी माँ ने अपनी उस दीनहीन दशा के बावजूद उनके साथ चलने से इनकार कर दिया था. तब चंद्रशेखर आज़ाद जी को दिए गए अपने एक वचन का वास्ता देकर सदाशिव जी उन्हें अपने साथ अपने घर झाँसी लेकर आये थे. क्योंकि उनकी स्वयं की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के कारण उनका घर बहुत छोटा था अतः उन्होंने आज़ाद के ही एक अन्य मित्र भगवान दास माहौर के घर पर आज़ाद की माताश्री के रहने का प्रबंध किया था और उनके अंतिम क्षणों तक उनकी सेवा और सम्मान अपनी माँ के समान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से ही किया था. अपनी भयानक आर्थिक स्थिति के बावजूद सदाशिव जी ने चंद्रशेखर आज़ाद को दिए गए अपने वचन के अनुरूप आज़ाद की माताश्री को अनेक
तीर्थस्थानों की तीर्थ यात्रायें अपने साथ ले जाकर करवायी थीं.
अब यहाँ से प्रारम्भ होता है वो खूनी अध्याय जो कांग्रेस की राक्षसी राजनीति के उस भयावह चेहरे और चरित्र को नंगा करता है जिसके रोम-रोम में चंद्रशेखर आज़ाद सरीखे क्रांतिकारियों के प्रति केवल और केवल जहर ही भरा हुआ था.
मार्च 1951 में चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री के देहांत के पश्चात झाँसी की जनता ने उनकी स्मृति में उनके नाम से एक सार्वजनिक प्याऊ की स्थापना की थी. प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने प्याऊ के निर्माण को झाँसी की जनता की अवैध और गैरकानूनी गतिविधि घोषित कर दिया था. किन्तु झाँसी के राष्ट्रभक्त नागरिकों ने कांग्रेसी सरकार के उस शासनादेश को "टॉयलेट पेपर" से भी कम महत्व देते हुए उस प्याऊ के पास ही चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित करने का फैसला कर लिया था.
आज़ाद के ही एक अन्य साथी तथा कुशल शिल्पकार रूद्र नारायण सिंह जी ने आज़ाद की माताश्री के चेहरे की प्रतिमा तैयार कर दी थी. झाँसी के नागरिकों के इन राष्ट्रवादी तेवरों से तिलमिलाई बिलबिलाई कांग्रेस की सरकार अबतक अपने वास्तविक राक्षसी रूप में आ चुकी थी. उसने अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापना को देश,समाज और झाँसी की कानून व्यवस्था के लिए खतरा घोषित कर उनकी मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम को प्रतिबंधित कर के पूरे झाँसी शहर में कर्फ्यू लगा कर चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात कर दी थी ताकि अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति की स्थापना ना
की जा सके. कांग्रेसी सरकार के इस यमराजी रूप के खिलाफ आज़ाद के अभिन्न मित्र सदाशिव जी ने ही कमान संभाली थी और चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति अपने सिर पर रखकर इस एलान के साथ कर्फ्यू तोड़कर अपने घर से निकल पड़े थे कि यदि चंद्रशेखर आज़ाद ने मातृभूमि के लिए अपने प्राण बलिदान कर दिए थे तो आज मुझे अवसर मिला है कि
उनकी माताश्री के सम्मान के लिए मैं अपने प्राणों का बलिदान कर दूं.
अपने इस एलान के साथ आज़ाद की माताश्री की मूर्ति अपने सिर पर रखकर प्याऊ की तरफ चल दिए सदाशिव जी के साथ झाँसी के राष्ट्रभक्त नागरिक भी चलना प्रारम्भ हो गए थे. अपने रावणी आदेश की झाँसी की सडकों पर बुरी तरह उड़ती धज्जियों से तिलमिलाई कांग्रेस की उस यमराजी सरकार ने अपनी
पुलिस को सदाशिव जी को गोली मार देने का आदेश दे डाला था किन्तु आज़ाद की माताश्री की प्रतिमा को अपने सिर पर रखकर प्याऊ की तरफ बढ़ रहे सदाशिव जी को जनता ने चारों तरफ से अपने घेरे में
लेकर आगे बढ़ना शुरू कर दिया था अतः सरकार ने उस भीड़ पर भी गोली चलाने का आदेश दे डाला था. परिणामस्वरूप झाँसी की उस निहत्थी निरीह राष्ट्रभक्त जनता पर यमराजी कांग्रेस सरकार की पुलिस की बंदूकों के बारूदी अंगारे मौत बनकर बरसने लगे थे सैकड़ों लोग घायल हुए, दर्जनों लोग जीवन भर के लिए अपंग हुए और तीन लोग मौत के घाट उतर गए थे.
यमराजी कांग्रेसी सरकार के इस खूनी तांडव का परिणाम यह हुआ था कि चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित नहीं हो सकी थी और आते जाते अनजान नागरिकों की प्यास बुझाने के लिए उनकी स्मृति में बने प्याऊ को भी पुलिस ने ध्वस्त कर दिया था. अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की
माताश्री की 2-3 फुट की मूर्ति के लिए उस देश में 5 फुट जमीन भी देने से यमराजी कांग्रेस सरकार ने इनकार कर दिया था जिस देश के लिए चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे.
उचित समझे तो इतना शेयर करिये कि सारा देश विशेषकर आज की नौजवान पीढ़ी का हर सदस्य इस सच से परिचित हो सके क्योंकि 65 सालों से कांग्रेस ने बहुत कुटिलता और कपट के साथ अपने ऐसे यमराजी कारनामों को हमसे आपसे छुपाकर रखा है. और 67 सालों से हमे सिर्फ यह समझाने की कोशिश की है कि देश की आज़ादी का इकलौता ठेकेदार मोहनदास करम चंद गांधी व उसके चमचे जवाहरलाल और इस जोड़ी का कांग्रेसी गैंग ही था.
साभार :::
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