सोमवार, ७ डिसेंबर, २०१५

आने वाला कल

  ( ज़रूर पढ़ें )

एक बार मैं अपने अंकल के साथ एक बैंक में गया,
उन्हें कुछ पैसा कहीं ट्रान्सफ़र करना था...

ये स्टेट बैंक एक छोटे से क़स्बे के छोटे से इलाक़े में था। वहां एक घंटे बिताने के बाद जब हम वहां से निकले तो उन्हें पूछने से मैं अपने आप को रोक नहीं पाया...

"अंकल क्यूँ ना हम घर पर ही इंटर्नेट बैंकिंग चालू कर लें...??"

अंकल ने कहा : "मैं ऐसा क्यूँ करूँ...??"

तो मैंने कहा : "अब छोटे-छोटे ट्रान्सफ़र के लिए बैंक आने की और एक घंटा टाइम ख़राब करने की ज़रूरत नहीं, और आप जब चाहे तब घर बैठे अपनी ऑनलाइन शॉपिंग भी कर सकते हैं। हर चीज़ बहुत आसान हो जाएगी...!!"

मैं बहुत उत्सुक था उन्हें नेट बैंकिंग की दुनिया के बारे में विस्तार से बताने के लिए। इस पर उन्होंने पूछा...

"अगर मैं ऐसा करता हूँ तो क्या मुझे घर से बाहर निकलने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी...?? मुझे बैंक जाने की भी ज़रूरत नहीं...??"

मैंने उत्सुकतावश कहा : "हाँ आपको कहीं जाने की जरुरत नही पड़ेगी और आपको किराने का सामान भी घर बैठे ही डिलिवरी हो जाएगा और ऐमज़ॉन, फ़्लिपकॉर्ट व स्नैपडील सब-कुछ घर पे ही डिलिवरी करते हैं..."

उन्होने इस बात पे जो जवाब मुझे दिया उसने मेरी बोलती बंद कर दी.....

उन्होंने कहा : "आज सुबह जब से मैं इस बैंक में आया, मैं अपने चार मित्रों से मिला और मैंने उन कर्मचारियों से बातें भी की जो मुझे जानते हैं। मेरे बच्चे दूसरे शहर में नौकरी करते हैं और कभी कभार ही मुझसे मिलने आते जाते हैं, पर आज ये वो लोग हैं जिनका साथ मुझे चाहिए। मैं अपने आप को तैयार कर के बैंक में आना पसंद करता हुँ, यहाँ जो अपनापन मुझे मिलता है उसके लिए ही मैं वक़्त निकालता हूँ।
दो साल पहले की बात है मैं बहुत बीमार हो गया था। जिस मोबाइल दुकानदार से मैं रीचार्ज करवाता हूं, वो मुझे देखने आया और मेरे पास बैठ कर मुझसे सहानुभूति जताई और उसने मुझसे कहा कि मैं आपकी किसी भी तरह की मदद के लिए तैयार हूँ...
वो आदमी जो हर महीने मेरे घर आकर मेरे यूटिलिटी बिल्स ले जाकर ख़ुद से भर आता था, जिसके बदले मैं उसे थोड़े बहुत पैसे दे देता था उस आदमी के लिए कमाई का यही एक ज़रिया था और उसे ख़ुद को रिटायरमेंट के बाद व्यस्त रखने का तरीक़ा भी...
कुछ दिन पहले मोर्निंग वॉक करते वक़्त अचानक मेरी पत्नी गिर पड़ी, मेरे किराने वाले दुकानदार की नज़र उस पर गई, उसने तुरंत अपनी कार में डाल कर उसको घर पहुँचाया क्यूँकि वो जानता था कि वो कहां रहती हैं।
अगर सारी चीज़ें ऑन लाइन ही हो गईं तो मानवता, अपनापन, रिश्ते-नाते सब ही ख़त्म हो जाएँगे...!!
मैं हर वस्तु अपने घर पर ही क्यूँ मँगाऊँ...??
मैं अपने आपको सिर्फ़ अपने कम्प्यूटर से ही बातें करने में क्यूँ झोंकूं...??
मैं उन लोगों को जानना चाहता हूँ जिनके साथ मेरा लेन-देन का व्यवहार है, जो कि मेरी निगाहों में सिर्फ़ दुकानदार नहीं हैं...
इससे हमारे बीच एक रिश्ता, एक बन्धन क़ायम होता है !
क्या ऐमज़ॉन, फ़्लिपकॉर्ट या स्नैपडील ये रिश्ते-नाते, प्यार, अपनापन भी दे पाएँगे...??"

फिर उन्होंने बड़े पते की एक बात कही जो मुझे बहुत ही विचारणीय लगी, आशा हैं आप भी इस पर चिंतन करेंगे..... उन्होंने कहा...

"ये घर बैठे सामान मंगवाने की सुविधा देने वाला व्यापार उन देशों मे फलता-फूलता हैं जहां आबादी कम है और लेबर काफी मंहगी है।
अपने भारत जैसे १२५ करोड़ की आबादी वाले गरीब एंव मध्यम वर्गीय बहुल देश में इन सुविधाओं को बढ़ावा देना आज तो नया होने के कारण अच्छा लग सकता है पर इसके दूरगामी प्रभाव बहुत ज्यादा नुकसानदायक होंगे...
देश मे ८०% जो व्यापार छोटे-छोटे दुकानदार गली मोहल्लों में कर रहे हैं वे सब बंद हो जायेंगे और बेरोजगारी अपने चरम सीमा पर पहुंच जायेगी। तो अधिकतर व्यापार कुछ गिने चुने लोगों के हाथों में चला जायेगा...
हमारी आदतें ख़राब और शरीर इतना आलसी हो जायेगा की बहार जाकर कुछ खरीदने का मन नहीं करेगा। जब ज्यादातर धन्धे व् दुकाने ही बंद हो जायेंगी तो रेट कहाँ से टकराएँगे तब ये ही कंपनिया जो अभी सस्ता माल दे रही है वो ही फिर मनमानी क़ीमत हमसे वसूल करेंगी। हमें मजबूर होकर सब-कुछ ऑनलाइन पर ही खरीदना पड़ेगा और ज़्यादातर जनता बेकारी की ओर अग्रसर हो जायेगी...!!"

मैं उनको क्या जबाब दूं, आजतक ये समझ नहीं पाया हूं, अगर आप को कोई सटीक जबाब मिले तो मुझसे जरुर शेयर करें।

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