बुधवार, ९ डिसेंबर, २०१५

शिव प्रदोष व्रत

पूजा : त्रयोदशी तिथि
समय : संध्या काल ( गोधूली कल )
देवता : भगवान् शंकर
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भवाय भवनाशाय महादेवाय धीमते |
रुद्राय नीलकंठाय शर्वाय शशि मौलिने ||
उग्रयोग्राघनाशाय भीमाय भय हारिने ईशानाय |
नमस्तुभ्यं पशुनाम पतये नमः ||
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सृष्टि की प्रत्येक वस्तु प्रकृति के विशेष सनातन नियमानुसार ही क्रियाशील है | प्रत्येक कर्म के साथ उसका फल जुड़ा होता है | परन्तु मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने तक ही सीमित है, फल पर मानव का कोई अधिकार नहीं है | समय आने पर कर्म का फल अवश्य प्राप्त होता है... यही प्रकृति का सनातन नियम है| ऐसा ही एक नियम है व्रत | व्रत से ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति और पवित्रता की वृद्धि होती है और अंतरात्मा शुद्ध होती है |

प्रदोष व्रत में त्रयोदशी तिथि की शाम को गौरीशंकर की पूजा का अत्यधिक महत्व होता है | यह वह समय होता है जब माँ गौरा और भगवान् शंकर अत्यंत शुभ अनुकूल अवस्था में होते हैं | इस समय भगवान् महादेव से प्रत्येक कार्य में विजय और सफलता की प्राप्ति हेतु और सकल मनोकामनाओं की पूर्ती हेतु प्रार्थना के पूजा की जाती है | इस समय प्रभु माँ गौरी के साथ अत्यंत प्रसन्न अवस्था में होते हैं...अतः इस समय की गयी उनकी पूजा, अर्चना और प्रार्थना अवश्य फलीभूत होती है |
स्कन्द पुराण में इसका विवरण मिलता है कि किस प्रकार शांडिल्य मुनि ने इस व्रत की महिमा एक ब्राह्मण महिला से कही | वह ब्राह्मण स्त्री मुनि के पास दो बालको के साथ आई थी, एक उसका अपना पुत्र, सुचिव्रत, और एक अनाथ राजकुमार, धर्मगुप्त, जिसके पिता की युद्ध भूमि में हत्या कर दी गयी थी और शत्रु पक्ष द्वारा राज्य पर कब्ज़ा कर लिया गया था | मुनि के निर्देशानुसार उस ब्राह्मणी और दोनों बालको ने अत्यंत भक्ति और श्रद्धापूर्वक प्रदोष व्रत आरम्भ किये | जब आठवा प्रदोष था, तो सुचिव्रत को अमृत कलश की प्राप्ति हुयी और धर्मगुप्त को उसका खोया राज्य भी प्राप्त हो गया और वह तीनो सुखपूर्वक निवास करने लगे |

एक अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्य इस व्रत पूजा से सम्बंधित यह है की इस पूजा के समय समस्त देवता अपने अपने सूक्ष्म रूप में आकर उपस्थित होते हैं इस पूजा में... जिस से इसकी महत्ता और भी अधिक बढ़ जाती है |

शास्त्रों में इस पूजा की महिमा का विस्तृत व्याखान मिलता है | महादेव के मंदिर में प्रभु के यदि केवल दर्शन ही कर लिए जाएँ तो अनेको जन्मो के पाप ताप नष्ट हो जाते हैं और कई गुना सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है | इस अत्यंत दुर्लभ शुभ समय में मात्र एक बिल्वपत्र तक चढ़ाना अनेको महापूजाओ के समान फलदायी होता है | इस समय शिव मंदिर में दीपक प्रज्वलित करने का बहुत अधिक महत्व है | संध्या काल में यदि इस दिन एक भी दीपक प्रज्वलित कर दिया जाय तो यह अनेको पुण्यो को प्रदान करने वाला कहा गया है , जिससे सकल सांसारिक और आध्यात्मिक शुभ फलो की प्राप्ति होती है | इस समय हम प्रभि से सीधा सम्बन्ध जोड़ सकते हैं | अत्यंत भाग्यशाली होते हैं प्रभु के वह भक्त जो इस व्रत को करते हैं... महादेव शीघ्र ही उनके सकल मनोरथो को अवश्य ही पूर्ण करते हैं | सूत जी के कथानुसार इस व्रत से सौ गौदान जितना फल प्राप्त होता है |

प्रदोष पांच प्रकार के होते हैं :
१) नित्य प्रदोष : प्रत्येक दिवस का गोधूली काल (शाम का समय) सूर्यास्त से ३ घटी (७२ मिन.) पहले जब आकाश में तारे दिखने लगते हैं |
२) पक्ष प्रदोष : शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का संध्या काल
३) मास प्रदोष : प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की संध्या
४) महा प्रदोष : प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी की संध्या और जिस दिन शनिवार का भी संयोग हो (अर्थात शुक्ल पक्ष का शनि प्रदोष )
५) प्रलय प्रदोष : वह समय जब सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शिव में विलीन हो शिव से ही एक हो जाता है (अर्थात महाप्रलय काल ) |

त्रयोदशी तिथि एक माह में दो बार पड़ती है | एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में | कुछ भक्त जन केवल शुक्ल पक्ष में ही इस व्रत को करते हैं , तो कुछ भक्त जन दोनों पक्षों की त्रयोदशी को | इस तिथि को संध्या समय सभी देव गण कैलाश पर एकत्रित होते हैं और शिव आराधन करते हैं , जिससे साधक को समस्त सुखो और ऐश्वर्यों की प्राप्ति होती है | वार के अनुसार यह व्रत विशेष फलदायी कहा गया है :

रवि (अर्क अथवा सूर्य ) प्रदोष - आरोग्य प्राप्ति और आयु वृद्धि
सोम प्रदोष व्रत- मन: शान्ति और सुरक्षा, सकल मनोरथ सफल
भौम (मंगल ) प्रदोष- ऋण मोचन
बुद्ध प्रदोष - सर्व मनोकामना पूर्ण
गुरु प्रदोष - शत्रु विनाशक, पित्र तृप्ति, भक्ति वृद्धि
शुक्र प्रदोष - अभीष्ट सिद्धि, चारो पदार्थो (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) प्राप्ति
शनि प्रदोष- संतान प्राप्ति
शनि प्रदोष व्रत की महिमा अपार है | यह संतान प्राप्ति हेतु संजीवनी का कार्य करता है |

त्रयोदशी तिथि के देवता कामदेव हैं और अगले दिन पड़ने वाली चतुर्थदशी के देवता भगवान् रूद्र (शिव) स्वयं हैं | और कृष्ण पक्ष की चतुर्थदशी को मासिक शिवरात्री होती है | माघ मास की शिवरात्री महाशिवरात्री कहाती है | शिव ने कामदेव को भस्म अवश्य किया था... परन्तु देवादि देव महादेव समस्त कामनाओ को पूर्ण कर प्रत्येक सुख प्रदान करने वाले देव हैं जो अत्यंत शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं | अत: त्रयोदशी और चतुर्थदशी के योग के समय अर्थात त्रोदाशी को संध्या समय जब सूर्यास्त होने को होता है... तब भगवान् शंकर की पूजा का महत्व और भी अधिक हो जाता है |

इस व्रत को प्रत्येक नर नारी कर सकते हैं | जिन नियमो का पालन इन व्रत को करना होता है, वह हैं :
- अहिंसा
- सत्य वाचन
- ब्रह्मचर्य (दैहिक और मानसिक दोनों प्रकार से )
- दया
- क्षमा
- निंदा और इर्ष्या न करना

कुछ भक्त रात्री जागरण करते हैं... तो कुछ भक्त जन यह व्रत निर्जल निराहार रखते हैं... तो कुछ भक्त फलाहार सहित यह व्रत रखते हैं ... अपनी अपनी सामर्थ्य अनुसार | २४, १४ अथवा १२ वर्ष तक इस व्रत को रखने का संकल्प कुछ भक्त जन लेते हैं ... तो कुछ एक वर्ष तक यह पावन व्रत करते हैं... कुछ भक्त केवल ८ प्रदोष रखते हैं... तो कुछ १६ प्रदोष... |

इस दिन व्रती को प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत हो शिव मंदिर में
सर्वप्रथम नंदी जी, फिर गणपति, कुमार कार्तिकेय, माँ गौरा की पूजा और नाग पूजन के उपरान्त दीप प्रज्वलित कर पंचामृत ( कच्चा दूध, दही, शहद, देसी घी और शक्कर) से शिवाभिषेक करना चाहिए | भगवान् शिव को अभिषेक अत्यंत प्रिय है | पूजा के समय पवित्र भस्म से स्वयं को पहले त्रिपुंड लगाना अत्यंत शुभ होता है | यदि पवित्र भस्म न उपलभध हो, तो मात्र जल से भी त्रिपुंड धारण किया जा सकता है | अथवा तो धूप से बनी भस्म से भी त्रिपुंड लगाया जाता है | और फिर इसी प्रकार की पूजा शाम के समय, सूर्यास्त से घंटा पहले, पुन: स्नान उपरान्त, की जाती है जिसका महत्व अधिक होता है और शिवालय में दीप प्रज्वलित किये जाते हैं | कुछ भक्त पूजा के समय कलश पूजन भी करते हैं | फिर शिव को अत्यंत प्रिय मृत्युंजय मंत्र की एक माला का जप करने का विधान है इस व्रत में |

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम |
उर्वारुकमिव बन्धनात मृत्युर्मुक्षीय माम्रतात ||

फिर प्रभु को भोग लगा कर प्रसाद ग्रहण किया जाता है और भक्त व्रत खोल लेते हैं और रात्री को अन्न ग्रहण कर लेते हैं | परन्तु कुछ भक्त अगले दिन ही अन्न ग्रहण करते हैं |

महादेव शंकर कृपा निधान हैं... अत: उनकी पूजा सेवा से सभी लौकिक, पारलौकिक अथवा आध्यात्मिक मनोवांछित फल प्राप्त किये जा सकते हैं |

हर हर महादेव... ॐ नम: शिवाय

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