सोमवार, १४ डिसेंबर, २०१५

विवाह एक बंधन

�� विवाह ��
मेरे मन में चल रहा
बरसो से ये मंथन है !
कौन कहता है --
विवाह एक बंधन है ?
विवाहोपरांत ही मानव की
सोच वृहद होती है !
घर-परिवार के साथ -साथ
संपूर्ण समाज उसकी
सरहद होती है !!
जवाबदारी के साथ उसका
मेल-मिलाप बढ़ जाता है !
जमाई नाम का एक सितारा
उसके ताज. में जुड़ जाता है !!
विचारों में उसके
बदलाव आ जाता है !
जीवन के हर पल में
चाव  आ जाता है !!
जीवन संगिनी उसकी
धर्मपत्नी कहलाती है !
जीवन के सुख-दुख की
वही संगी - साथी है !!
सकल शास्त्रो का सार यही
यही मुल निचोढ़ है !
पति-पत्नी ही धर्म-कर्म का
एक मजबूत जोड़ है !!
भवसागर से पार करा दे
यह ऐसा गठबंधन है !
कौन कहता है --
विवाह एक बंधन है !!
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