शनिवार, १३ फेब्रुवारी, २०१६

आखिर कैसे हुआ वैलेंटाइन-डे जन्म...

आखिर कैसे हुआ वैलेंटाइन-डे जन्म...???

एक ऐसा आश्चर्य जो आपको चकित कर देगा...!!!
श्री #राजीव_दीक्षित जी
दोस्तों!

#यूरोप और #अमेरिका का #समाज जो है वो रखैलों (Kept) में विश्वास करता है पत्नियों में नहीं। यूरोप और अमेरिका में आपको शायद ही ऐसा कोई #पुरुष या
#महिला मिले जिसकी एक ही #शादी हुई हो, ये एक दो नहीं हजारों साल की परम्परा है उनके व्हाँ ।

आपने एक शब्द सुना होगा "#Live in Relationship इसका मतलब होता है कि "बिना शादी के पति-पत्नी की तरह रहना" ।

यूरोप और अमेरिका में ये
परंपरा आज भी चलती है।
खुद प्लेटो (एक यूरोपीय दार्शनिक) का एक #स्त्री से सम्बन्ध नहीं रहा, #प्लेटो ने लिखा है कि "मेरा 20-22 स्त्रियोँ से सम्बन्ध रहा है" अरस्तु भी यही कहते है, और #रूसों ने तो अपनी आत्मकथा में लिखा है कि "एक
स्त्री के साथ रहना, ये तो कभी संभव ही नहीं हो सकता, It's Highly Impossible" ।

इन सभी महान दार्शनिकों का तो कहना है कि "स्त्री में तो #आत्मा ही नहीं होती। स्त्री तो मेज और कुर्सी के समान हैं,जब पुराने से मन भर गया तो पुराना हटा के नया ले आये "।

बीच-बीच में यूरोप में कुछ-कुछ ऐसे लोग निकले जिन्होंने इन बातों का विरोध किया और इन रहन-सहन की व्यवस्थाओं पर कड़ी टिप्पणी की । उन कुछ लोगों में से एक ऐसे ही #यूरोपियन #व्यक्ति थे जो आज से लगभग 1500 साल पहले पैदा हुए, उनका नाम था - #वैलेंटाइन ।
ये कहानी है 478 AD (after death) की, यानि ईसा की मृत्यु के बाद ।

उस वैलेंटाइन नाम के महापुरुष का कहना था कि "हम लोग (यूरोप के लोग) जो शारीरिक सम्बन्ध रखते हैं जानवरों की तरह, ये अच्छा नहीं है, इससे यौन संबंधी रोग  (Venereal Disease) होते हैं, इनको सुधारो, एक पति-पत्नी के साथ रहो, #विवाह कर के रहो।" वो वैलेंटाइन महाशय रोम में घूम-घूम कर यही भाषण दिया करते थे।

संयोग से वो एक चर्च के पादरी हो गए तो चर्च में आने वाले हर व्यक्ति को वो यही शिक्षा देते थे।कुछ लोगों ने उनसे पूछा कि ये वायरस आप में कहाँ से घुस गया??? ये तो हमारे यूरोप में कहीं नहीं है।

तो वो कहते थे कि "आजकल मैं भारतीय संस्कृति और दर्शन का अध्ययन कर रहा हूँ, और मुझे लगता है कि वो उत्तम है, और इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप लोग इसे मानो।
तो जो लोग उनकी बात मानते थे, उनकी #शादियाँ वो #चर्च में कराते थे। ऐसी एक-दो नहीं उन्होंने #सैकड़ों शादियाँ करवाई थी ।

जिस समय वैलेंटाइन हुए, उस समय #रोम का #राजा था #क्लौड़ीयस।
क्लौड़ीयस ने कहा कि "ये जो आदमी है-वैलेंटाइन, ये हमारे यूरोप की परंपरा को बिगाड़ रहा है, हम बिना शादी के रहने वाले लोग हैं, #मौज-मजे में डूबे रहने वाले लोग हैं, और ये शादियाँ करवाता फ़िर रहा है, ये तो अपसंस्कृति फैला रहा है, हमारी #संस्कृति को नष्ट कर रहा है"।

इसलिए क्लौड़ीयस के आदेश पर वैलेंटाइन को #14 फ़रवरी #498 ई.वी. को #फाँसी दे दी गई।उसका आरोप क्या था कि वो बच्चों की शादियाँ कराता था। मतलब शादी करना जुर्म था ।

तो जिन बच्चों ने वैलेंटाइन के कहने पर शादी की थी वो बहुत #दुखी हुए और उन सब ने उस वैलेंटाइन की दुःखद याद में 14 फ़रवरी को वैलेंटाइन डे मनाना शुरू किया तो उस दिन से यूरोप में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है ।

तो ये था वैलेंटाइन-डे का इतिहास और इसके पीछे का आधार ।

अब यही वैलेंटाइन-डे भारत में आ गया है ।यहाँ शादी होना एकदम सामान्य बात है लेकिन यूरोप में शादी होना ही सबसे असामान्य बात है ।

अब ये #वैलेंटाइन डे हमारे स्कूलों में कॉलजों में बड़े धूम-धाम से मनाया जा रहा है और हमारे यहाँ के #लड़के-लड़कियाँ बिना सोचे-समझे एक दूसरे को वैलेंटाइन डे का कार्ड दे रहे हैं।

ये सब लिखने के पीछे का उद्देश्य यही है कि नक़ल आप करें पर उसमे अपनी अक्ल भी लगा लिया करें ।
उनके यहाँ साधारणतया शादियाँ ही नहीं होती है और जो शादी करते हैं वो वैलेंटाइन डे मनाते हैं लेकिन हम #भारत में क्यों ये त्यौहार मनाएं...???

भारत #देश #संस्कारी देश है। यहाँ हर रिश्ते का अपना महत्व है। इस देश में #पति को #नारायण और #पत्नी को #लक्ष्मी का दर्जा दिया जाता है। भारत की नारी को भोग की पुतली नही बल्कि सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

ऐसे भारत देश में वैलेंटाइन डे की गन्दगी से युवावर्ग जिस दिशा की ओर बढ़ रहा है वो बहुत ही #भयावह है।

हर मनुष्य अपने संस्कारों से ही पहचाना जाता है। उसके संस्कार ही समाज में उसे प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठत बनाते है। तो हम ऐसी संस्कृति का अनुसरण क्यों करें जिसमें हमारा जीवन अंधकार की घोर खाई की ओर जा रहा हो। इसे तो हम अपनी पवित्र संस्कृति अपनाएं।

हमारे शास्त्रों में माता-पिता को देवतुल्य माना गया है और इस संसार में अगर कोई हमें निस्वार्थ और सच्चा प्रेम कर सकता है तो वो हमारे माता-पिता ही हो सकते है।

तो क्यों न हम संत #आसाराम जी बापू प्रेरित #14 फ़रवरी_मातृ_पितृ_पूजन जैसे सच्चे प्रेम का सम्मान करें ।

ऐसे प्रेम का जो हमसे अपेक्षा रहित है।
ऐसे प्रेम का जिन्होंने हमें सिर्फ दिया ही दिया है।
ऐसे प्रेम का जिन्होंने हमारी ख़ुशी के लिए अपनी सारी इच्छाओं की बलि चढ़ा दी है।

आओ एक नयी दिशा की ओर कदम बढ़ाएं।
आओ एक सच्ची दिशा की ओर कदम बढ़ाएं।
14 फ़रवरी को वैलेंटाइन डे नही माता-पिता की पूजा करके उनका शुभ आशीष पाएं।

देखिये वीडियो
- http://www.youtube.com/watch?v=V1nW7hUGJws

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