बुधवार, ३ फेब्रुवारी, २०१६

शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग जो दूसरों के लिए निस्वार्थ इस्तेमाल होता है

बीती 31 जनवरी को मेरे बहुत ही नजदीकी दोस्त पीयूष अग्रवाल की मां सरोज का दिल का दौरा पड़ने से 80 साल की उम्र में निधन हो गया। तब मैं ओडिशा के दूरस्थ इलाके में था। वहां दुनिया से जुड़े रहना एक बड़ी समस्या है, इसलिए मुझे इसकी जानकारी 48 घंटे बाद मिली। तब तक तो उठावने सहित सभी संस्कार पूरे हो गए थे। जिस दोस्त से दिन में कम से कम एक बार मैं बात करता ही हूं उसे 48 घंटे बाद कॉल करना मुझे शर्मिंदा कर रहा था। बचपन की एक कहानी दिमाग में कौंधी। मेरी मां कर्नाटक संगीत की गायिका थीं। हालांकि, सुनने की क्षमता में आंशिक विकृति के कारण उन्होंने गायिकी छोड़ दी थी। इसलिए बचपन में एक बार जब उन्होंने मुझसे पूछा कि शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग कौन-सा होता है? तो मैंने पलक झपकते ही कहा, ‘कान।' लेकिन उनका जवाब था, ‘नहीं।' फिर उन्होंने कहा कि उनकी तरह कई लोग हैं, जो सुन नहीं सकते। तमिल कवि और दार्शनिक तिरूवल्लूवर से भी वह सहमत नहीं थी, जिनका तमिल साहित्य में योगदान है -तिरुक्कुरल। यह नीति शास्त्र पर आधारित कविता है। जो कहती है, ‘सेलवाथिल सेलवम सेवी सेलवम।' इसका मतलब है सभी संपत्तियों में सुनने की क्षमता सबसे बड़ी संपत्ति है, लेकिन मां ने उस समय मुझे सही जवाब नहीं दिया।
कई साल गुजर गए। मेरे पिता को बचपन में स्मॉल पॉक्स हुआ था और वे रात को देख नहीं सकते थे। एक दिन मैं मां के पास गया और उस सवाल का जवाब दिया, ‘आंखें शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है।' उनका जवाब था, ‘नहीं।’ उन्होंने मुझे ऐसे दर्जनों लोगों के नाम गिना दिए जो दृष्टिहीन होते हुए भी सामान्य जीवन जी रहे थे, लेकिन सही जवाब मुझे तब भी नहीं दिया। उस घटना को कई साल बीत गए। अचानक एक दिन नानी का निधन हो गया और पूरा परिवार एकत्र हुआ। जैसे ही हम नानाजी के घर पहुंचे मेरी मां टूट-सी गई और मेरे मामा की आंखें नम दिखाई दीं। संस्कार शुरू हुए। हम बच्चों को घर पर ही रहने के लिए कहा गया और परिवार के बड़े सदस्य नानी को अंतिम विदाई देने जाने वाले थे। तब मेरे पिता ने कुछ अनोखा किया। उन्होंने मां का सिर आहिस्ता से अपने कंधे से हटाया और मेरे कंधे पर रख दिया। वे संस्कार क्रियाओं में पंडितों की मदद करने लगे। मैंने मजबूती से मां को थाम रखा था। मां को सहारा देकर मुझे अच्छा और मजबूत पुरुष होने का अहसास हो रहा था, हालांकि तब मैं सिर्फ 15 साल का था। जैसे ही वे नानी को बाहर ले गए, अचानक मां ने पूछा, बेटा तुम जानते हो शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग कौन-सा है?
ऐसी दुख की घड़ी में यह सवाल सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ, क्योंकि मुझे लगता था कि यह एक किताबी सवाल है और इस पर पढ़ाई के समय ही बातचीत होनी चाहिए। उन्होंने मेरे चेहरे पर संदेह का भाव देखा। मुझे ऐसे देखा जैसे सिर्फ एक मां ही अपने बच्चे को देख सकती है। उन्होंने कहा, "आज मैं सही उत्तर बताती हूं, क्योंकि यह तुम्हारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण सबक है। शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है- तुम्हारे कंधे, बिल्कुल निस्वार्थ, क्योंकि इन्होंने आज मेरे सिर को सहारा दिया है, कल संभव है कि यह तुम्हारी बहन के सिर का सहारा बनेंगे (मुझे बताया कि जब वे चली जाएं, मुझे क्या करना चाहिए) और फिर तुम्हारी पत्नी और बच्चों को सहारा देंगे, जब वे तकलीफ में होंगे। जीवन में सभी को कभी न कभी रोने के लिए कंधे की जरूरत होती है और मुझे उम्मीद है कि जब उन्हें इनकी जरूरत होगी तुम सहारा दोगे।’ इसलिए आज मुझे बुरा लग रहा है कि अपने दोस्त को अपने कंधों का सहारा नहीं दे सका, जबकि उसे आज इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।

फंडा यह है कि दोस्त और रिश्तेदार कभी यह नहीं भूल पाते कि आपने उन्हें कैसा अहसास कराया था और इसलिए सभी को यह पता होना चाहिए कि शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग कंधा होता है। और जरूरत के समय कभी भी इसका सहारा देने का कोई भी मौका खोना नहीं चाहिए।

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